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________________ wwwwwwwwwww amananmanirwwwwwwwww बारह व्रत वर्णन। १२५ भोजन औषध मह नाना, फुनि दान अमे परवाना ॥१॥ भोजन दानहिं धन पावै, मौषधि करि रोग न मावे।। श्रुतिदान बोध जु लहाई, इह आशा श्रीजिनगाई ।। ७२ ।। अभया है अभय प्रदाता, भाचे प्रमु केवल शाता। इक भोजनदाने माही, चट दान सधे शक नाही ।। ७३॥ नहिं भूख समान न व्याधी, भव माहीं बड़ी उपाधी। तातें भोजनसो अन्या, नहिं दूजी औषध धन्या ।। ७४ ।। फुनि भोमनवल करि साघू, करई जिनसूत्र अराधू । भोजनतें प्राण अधारा, भोजनतें थिरता धारा ७५ । . तातें चउ दान सधे दानें करि पुण्य बंधे हैं। सो सहु बांछा तजि ज्ञानी, होवो दानी गुणखानी ७६ । इह भव पर भवको भोगा, चाहै नहिं जानहिं रोगा। दे भक्ति करि सुपात्रनकों, निजरूप ज्ञानमात्रनिकों । ७७। तिह रतनत्रयमे संघो, थाप्यो चउविधिको संघो । सो पावै मुक्ति बिमुक्ती, इह केवलि भाषित उक्की १७८ नहिं दान समान जु कोई, सब व्रतको मूल जु होई। यासे भविजन चित धारो, संसारपार जो चाहो । ७६ । जो भाषे त्रिविधा पात्रा, तिनिमे मुनि उत्तम पात्रा। हैं मध्यम पात्रअणुव्रती, समदृष्टी जघन्य अवत्ती। ८० इन तीननिके नव भेदा, मारे गुरु पाप उछेदा । उत्तममें तीन प्रकारा, उतकिष्ट मध्य लघु धारा ८१ । उत्तम तीर्थकर साधू, मध्य सु गणधर माराधू । तिनतें लघु मुनिवर सर्वे, जे तप व्रतसनहिं गः ॥ ८२ ॥
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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