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________________ पारह व्रत वर्णन। निसि ही नितप्रति करनों नाही, त्याग विराम विवेक धराही। नियम माहिं करनों नितनेमा सीम माहिं सीमाको प्रेमा ॥१०॥ करि प्रमाण मोगनिको भाई, इन्द्रिनको नहिं प्रबल कराई। जैसे फणि दूध जु प्यावौ, गुणकारी नहिं विष उपजावो।५ जो तजि भोग भाव अधिकाई, मलपभोग संतोष धराई । सो बहुती हिंसातें छूटयौ, मोहबतें नहिं जाय जु सूटयौ ५२॥ दया भाव उपजो घट ताके, भोगभावकी प्रीति न जाके। भोगुपभोग पापके मूला, इनकू से ते भ्रम भूला ॥५३॥ दोहा-हिंसाके कारण कहे, सर्व भोग उपभोग। इनको त्याग करै सुधी, दयावंत भवि लोग ॥५४ ।। सो प्रावक मुनि सारिख, भोग अरुचि परणाम । समता धरि सब जीव परि, जिनके क्रोध न काम ॥ ५५ ॥ भोगुपभोग प्रमाण सम, नहीं दूसरो और । तृष्णाको क्षयकार जो, है व्रतनि सिरमौर ॥५६ ।। अतीचार या व्रतको, सजो पठच दुखदाय । तिन तजियां व्रत बिमल हुदै लहिये श्री जिनराय ।। ५७।। नियम कियौ जु सचित्तको, भूलिर करें अहार । सो पहलो दूषण भयो सजि हूजे अविकार ॥ ५८ ।। प्रासुक वस्तु सञ्चित्तसों, मिश्रित कवहूं होय । सष्ण जल जु सीतल उदक मिल्यो न लेवौ कोय ॥५६॥ गृहें दोष दूजो लगे, अब सुनि तीजो दोष । जो सचिशसंबंध, सजौ पापको पोष।। ६० ।। पातल दूनां मादिजे, बस्तु सचित भनेक।
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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