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जैन-क्रियाकोष । फुनि प्रभात संध्या करि वीरा, दिन उपवास ध्यानधरि धीरा१५ पूरी करै धर्मसों जोई सध्या करै साझको सोई। निशि उपवासतणी ब्रतधारी, पूरी करै ध्यानसों सारी ॥१६॥ करि प्रभात सामायक शुबुधी, जाके धटमें रश्च न कुबुधी। पारण दिबस करै जिनपुमा, प्रामुक द्रव्य और नहिं दजा १७॥ अष्ट द्रव्य ले प्रासुक भाई श्री जिनवरकी पूज रचाई।। पात्रदान करि दो पहरा जे, करै पारण आप घरांजे ॥ १८ ॥ ता दिन हू यह रीति बताई, ठौर आहार अल्प जल पाई। धारन पारन अर उपवासा, तीन दिवसलो बरत निवासा ॥१६॥ भूमिशयन शीलनत धार, मन बच तन करि तजै विकार। इहउतकृष्टी पोसह विधि है, या पोसह सम और न निधि है २० मध्य जु पोसह बारह पहरा, जपनि आठ पहवा गुण गहरा। अतीचार याके तजि पंचा, जाकरि छूटे सर्व प्रपंचा ।। २१ ॥ बिन देखी बिन पूछे वस्तू, ताको गृहिवौ नाहिं प्रशस्तु । गृहिवौ अतीचार पहलो है, साको त्यागसु अतिहि भलो है ।२२॥ बिन देखे विन पूछे भाई, सथारे नहिं शयन कराई । अतीचार छटै तब दूमो, इह आज्ञा धरि जिनवर पूजो ।। २३ । बिन देखो बिन पूछो जागा, मल मूत्रादि न कर वड़भागा। करिबो अतीचार है तीजौ, सर्व पाप तजि पोसह लीजो ॥२४॥ पर्व दिनाको भूलन चौथो, अतीचार यह गुणतें चौथो । बहुरि अनादर पंचम दोषा पोसहको नहिं आदर पोषा ।। २५।। ये पाचो तजिया है पोषा, निरमल निश्चल अति निरदोषा । सामायक पोषह जयवंता, जिनकर पइये श्रीभगवंता॥२६॥