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________________ बारह ब्रत वर्णन। तौहु त्रिकाल न टारिवौ, यह धारै बुध सोय ॥ ८२॥ जो समायकके ममय, थिरता गहै सुआन । मणुबूत धार सो सुधी, तौपनि साधु भमान ॥ ८३॥ छन्द चाल सामायक सो नहिं मित्रा, दूनो बूत कोई पवित्रा । गृहपतिको जतिपति तुल्या, करई इह बूत जु अतुल्या ॥८४॥ तसु अतीचार तजि पंचा, जब होइ सामायक संचा। मन बच तन दुःप्रणिधाना, तिनको सुनि भेद बखाना ॥५॥ जो पाप काज चितवना, सो मनको दूषण गिनना। फुनि पाप वचनको कहिवौ, सो वचन व्यतिक्रम लहिवौ ॥८६ सामायक समये भाई, जो कर चरणादि चलाई। सो तनको दोष वतायो, सतगुरुने ज्ञान दिखायो ।॥८॥ चौथो जु अनादर नामा, है अतीचार अघधामा। आदर नहिं सामायकको, निश्चै नहिं जिननायकको ॥८॥ समरण अनुपस्थाना है, इह पंचम दोष गिना है। ताको सुनि अर्थ विचारा, समरणमे भूलि प्रचारा cen नहिं पूरो पाठ पडै जो, परिपूरण नाहिं जपं जो। कछुको कछु बोलें बाल, सो सामायक नहिं काल ||१०|| ए पञ्च अतीचारा है, सामायकमें टारा हैं। समता सब जीवन सेती, संजम सुभ भावन लेती ॥६॥ भारति अरू रौद्र जु त्यागा, सो सामायक बड़भागा। सामायक धारौ भाई, जाकरि भवपार लहाई ॥२॥
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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