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________________ १०० जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन ३. तत्त्वगत प्रधानता और ४. काव्य रूप नामकरण की दृष्टि से वर्गीकरण किसी भी कृति के नामकरण के पीछे कृतिकार का कोई ध्येय होता है । शीर्षक - औचित्य रचना को प्रभावशाली बनाने के साथ ही उसके कतिपय गुणों की भी द्योतित करता है। आलोच्य प्रबन्धकाव्यों को चरित ( कहीं चरित्र भी ) पुराण, रास, कथा, वेलि, मंगल, चन्द्रिका, बारहमासा आदि अनेक नामों से अभिहित किया गया है । चरित नामान्त इनमें 'चरित' (अथवा चरित्र) शब्द अन्त में प्रयुक्त हुआ है । चरितकाव्य प्रबन्धकाव्य का ही एक विशेष रूप या प्रकार है । यही कारण है कि प्राय: चरितकाव्यों ने अपने को कभी चरित, कभी कथा और कभी पुराण कहा है । चरितकाव्य की शैली जीवनचरित की शैली होती है । उसमें आरम्भ में या तो ऐतिहासिक ढंग से नायक के पूर्वज, मातापिता और वंश का वर्णन रहता है या पौराणिक ढंग से उसके पूर्वभवों का वृत्तान्त तथा उसके जन्म के कारणों का वर्णन होता है अथवा कथाकाव्य की तरह उसके माता-पिता, देश और नगर का वर्णन रहता है । उसमें चरितनायक के जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त की अथवा कई जन्मों ( भवान्तरों) की कथा होती है । उसमें शास्त्रीय प्रबन्धकाव्यों की तरह महत्त्वपूर्ण और कलात्मकता उत्पन्न करने वाली अनेक घटनाओं के विधान की और वर्णनात्मक अंशों की अधिकता नहीं होती । अतः वह कथात्मक अधिक और वर्णनात्मक कम होता है । चरितकाव्य का कवि कथा को छोड़ कर वस्तुवर्णन या प्रकृति चित्रण में अधिक देर तक नहीं उलझता । इसी कारण वह कथाकाव्य के अधिक निकट तथा शास्त्रीय प्रबन्धकाव्यों की अपेक्षा अधिक स्वाभाविक, सरल और लोकोन्मुख होता है । चरित
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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