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परिचय और वर्गीकरण काव्य' का कथानक संस्कृत कवि भट्टारक वर्द्धमान कृत 'वरांग चरित्र' के अनुसार है। इस कृति के प्रणयन में कवि को उनके समकालीन प्रसिद्ध कवि नथमल बिलाला से विशेष सहायता मिली।
'वरांग चरित्र' बारह सर्गों का महाकाव्य है। इसका नायक नप वरांग है, जिसका चरित्र अनेक विशेषताओं का भण्डार है ।
प्रबन्ध की भाषा शैली भावानुकूल, सशक्त और मार्मिक है। छन्दों के समुचित प्रयोग में भाव नाच उठे हैं।
वरांग चरित्र (कमलनयन कृत)
कवि कमलनयन ने 'वरांग चरित्र' की रचना विक्रम संवत् १८७७ में की । भट्टारक वर्द्धमान ने संस्कृत भाषा में १३ सर्गों में 'वरांग चरित्र' की रचना की थी। प्रस्तुत ग्रन्थ उसी का भाषान्तर है ।
भट्टारक श्री बर्द्धमान अति ही विसाल मति । कियो संस्कृत पाठ ताहि समझ न तुछ मति ।। . ताही के अनुसार अरथ जो मन में आयो। निज पर हित सुविचार 'लाल' भाषा कर गायो ।
-वही, पद्य १००, सर्ग १२, पृष्ठ ८४ । २. वही, पद्य ६५. सर्ग १२, पृष्ठ ८३ । ३. छूटे धनुष तें तीछन तीर । भूतल छाय लियो वर वीर ।। मानों प्रलयकाल घनघोर । जलधारा वरषत चहुँ ओर ॥१०२।।
-वही, सर्ग ८, पृष्ठ ४४ । ४. सम्पादक श्री कामता प्रसाद जैन, प्र० श्री जैन साहित्य समिति,
जसवंतनगर (इटावा) प्र० सन्, १६३६ ई० । ५. संवत नव दूने सही, सतक उपरि पुनि भाखि । युगम सप्त दोऊ धरि, अंक वाम गति साखि ॥
-वरांग चरित्र, पद्य सं० ११६, प्रशस्ति, पृ० १३६ ।