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________________ १४ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन उपर्युक्त अनूदित प्रबन्धकाव्यों से इतर भट्टारक विश्वभूषण का 'जिनदत्त चरित" (विक्रम संवत् १७४७), विनोदीलाल का 'भक्तामर चरित (विक्रम संवत् १७४७), खुशालचन्द कृत 'हरिवंश पुराण" (विक्रम संवत् १७८०), 'यशोधर चरित" (विक्रम संवत् १७८१), पद्म पुराण" (विक्रम संवत् १७८३), 'उत्तर पुराण'६ (विक्रम संवत् १७६६) आदि अनूदित काव्यों के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रबन्धकाव्य हैं। (उन्नीसवीं शताब्दी) जीवंधर चरित यह एक उत्कृष्ट कोटि का अनूदित प्रबन्धकाव्य है। इसका प्रणयन बसवा (जयपुर) निवासी दौलतराम कासलीवाल ने उदयपुर में (विक्रम संवत् १८०५) किया । उस समय उदयपुर में महाराणा जगतसिंह का राज्य था। प्रस्तुत प्रबन्ध पाँच अध्यायों में विभक्त है। उसके कथानक का चयन महापुराण (श्लोक संख्या बीस हजार) से किया गया है । स्वयं कवि के अनुसार उसकी कथा सरस और नवरस से परिपूर्ण है । ११ । १. दि. जैन मन्दिर, वासन दरवाजा, भरतपुर से प्राप्त हस्तलिखित प्रति ' २. जैन सिद्धान्त भवन, आरा (बिहार)। .. जैन मन्दिर बघीचन्द जी का शास्त्र भण्डार, जयपुर । १. आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर । जैन मन्दिर बघीचन्द जी का शास्त्र भण्डार, जयपुर। ... ६. वही। ७. जैन साहित्य शोध-संस्थान, जयपुर से प्राप्त हस्तलिखित प्रति । ८. जीवंधर चरित काव्य-प्रशस्ति, पद्य ८, पृष्ठ ६३ । । १. वही, पद्य २, पृष्ठ ६२ । १०. वही, पद्य ५, पृष्ठ ६३ । १. वही, पद्य ७, पृष्ठ ६३ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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