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जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
यशोधर चरित चौपई '
प्रस्तुत चौपईबन्ध काव्य की रचना साह लोहट ने विक्रम संवत् १७२१ में की । रचना सुन्दर और सरस है । इसमें कवि का उद्देश्य राजा यशोधर के चरित्र के माध्यम से जन-हृदय पर 'जीव - दया' की भावना को प्रगाढ़ करना रहा है :
मैं मतिसारु वर्णन कीयौ । चरित यशोधर परिचय दीयौ ॥ सुगम पंथ लषि लागो वाट । कीनी सरस चौपई थाट || भविजन कथा सुनौ दे कान । ता प्रसादि पावै सुर थान ॥ जीव दया उपजै अधिकार । सो संसार उतारे पार ॥
कचोर की कथा
इसका अपर नाम धनदत्त सेठ की कथा है । कवि नथमल ने इसकी रचना चाकसू नगर में विक्रम संवत् १७२५ में की ।" इसमें धनदत्त सेठ के चरित्रांकन के साथ ही बँकचोर (नामी चोर) के हृदय परिवर्तन पर बड़ी मर्मस्पर्शिता से प्रकाश डाला गया है। इसका उद्देश्य सरस कथा के माध्यम से चरित्रगत अनेक भूमियों को निदर्शित करना है ।
कवि ने अनलंकारिक सहज भाषा और सरल शैली में भावों को अभिव्यक्त किया है । भाषा राजस्थानी से प्रभावित है । उसमें प्रान्तीय शब्दों का विनिवेश है ।
" आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर से प्राप्त हस्तलिखित प्रति । २. यशोधर चरित चौपई, पृष्ठ १३१ ।
४.
३. aar (जयपुर जिले का एक प्राचीन कस्बा, जो 'जयपुर-1 पर स्थित है) के आदिनाथ मंदिर से प्राप्त हस्तलिखित प्रति ।
जयपुर जिले का एक कस्बा ।
4. कचोर की कथा, पद्य २६०, पृष्ठ ३३ ॥
र-दिल्ली रेलवे लाइन