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________________ उपसंहार ३६७ धर्म ___ समाज के अतिरिक्त इन प्रबन्धकाव्यों ने धार्मिक जगत् को भी कम प्रभावित नहीं किया है। आलोच्यकाल में धर्म अरक्षित हो गया था। इस्लाम और ईसाई धर्म भारत पर हावी होते जा रहे थे । ऐसे समय में इन्होंने धर्म-संरक्षा की एक दिशा दी, आत्म-विकास में बाधक तत्त्वों के स्थान पर साधक तत्त्वों को अपनाने का संदेश दिया । कहना न होगा कि ये कवि अपने काव्यों में धर्म को बहुत महत्व देते रहे । इन्होंने धर्म के दस लक्षणों के अनुकूल आचरण करने के लिए श्रद्धा, विश्वास और आचारमूलक अनेक तत्त्वों को समाज के सामने रखा; धार्मिक परिवेश में स्वकर्तव्य और सदाचार को विशेष महत्त्व दिया । समाज धर्मभीरु बना रहे तथा सत्पथ की सीमाओं एवं नैतिक विधि-विधानों में बंधा रहे, इस हेतु इन्होंने शुभाशुभ कर्म और उसके फल, पुनर्जन्म, स्वर्ग-नरक आदि के चित्रों को रूपायित किया ताकि मनुष्य अपने धर्म (कर्तव्य) और मनुष्यता के आदर्श को भुला न बैठे। - इन कवियों द्वारा भक्ति-मार्ग भी पुष्ट हुआ। इनके अधिकांश काव्यों में तीर्थकरों की 'पंचकल्याणक' स्तुतियों के रूप में भक्ति-भावना का उन्मेष दिखायी देता है। उनमें इनके दर्शन, कीर्तन और स्मरण के प्रसंग को अनेक स्थलों पर दोहराया गया है; आराध्य की महत्ता और भक्त की लघुता के निरूपण द्वारा भक्तिभाव को उत्कर्ष तक पहुंचाया गया है। पंच नमस्कार (अर्हत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधुओं की वंदना) में भी भक्ति औदात्य निदशित है । गुरु-भक्ति तो इन कवियों की जैसे सबसे बड़ी थाती है। दर्शन धर्म दर्शन से जुड़ा हुआ है। सभी आलोच्य कवि भक्त थे, पर सभी दार्शनिक नहीं। यद्यपि इन सभी कवियों का काव्य प्रकारान्तर से दार्शनिक
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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