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________________ ३८६ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन राजगृह नगर का राजकुमार,' हंसद्वीप की राजरानी, 'सीता चरित' में रावण आदि । ___ 'यशोधर चरित' और 'श्रीणिक चरित' का लक्ष्य हिंसा की भर्त्सना और अहिंसा की प्रतिष्ठा है। 'निशि भोजन त्याग कथा' तथा 'बंकचोर की कथा' का लक्ष्य' शील, संयम, व्रतादि की महत्ता का निदर्शन है। कहने का तात्पर्य यह है कि इन प्रबन्धों के माध्यम से मानव को आचरण की श्रेष्ठता का संदेश दिया गया है और यह समझाना मुख्य उद्देश्य रहा है कि आचारगत पवित्रता से जीवन में सरसता और सुन्दरता बरसती है, चरित्र उत्कर्ष को प्राप्त होता है और आदर्शों की रक्षा होकर मानवता का कल्याण होता है। इसके विपरीत भ्रष्ट आचरण का फल गहित और कष्टजनक होता है । बार्शनिक परिपार्श्व में शुद्धात्म तत्त्व का संदेश 'चेतन कर्म चरित्र' और 'शतअष्टोत्तरी' प्रबन्धकृतियों का लक्ष्य कुबुद्धि, फिर सारे नगर फिरायो । प्रति बीथी ढोल बजायो ॥ इस भांति कमठकी ख्वारी। देखे सब ही नर नारी ॥ पुरवासी लोक धिकारें । बालक मिलि कंकर मारें। यों दंड दियो अति भारी। फिर दीनों देश निकारी ॥ जो दीरघ पाप कमाये । ततकाल उदै बहु आये ॥ -पावपुराण, पद्य ६०-६३, पृष्ठ १२ । पकरे ताके तब चरन सार । धरती पै पछारो तीन बार ॥ फिर हाथ पांय कसके बनाय । बाँधे ताके मुसकें चढ़ाय ।। कर ऊर्ध्व चरन लटकाय दीन । कर नीचेको मुख त्रास दीन ॥ -शीलकथा, पृष्ठ ४३ । जीव दया जहि जाने धरम । नहिं क्रिया तहि बंध करम ।। करम बंध तें नरक निवास। करम बंध तें सब सुष नास ॥ यातें सरब दुषां को मूरि । अदया भाव करो तुम दूरि ।। -यशोधर चरित, पद्य ४१०-११ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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