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________________ ३५२ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन दर्शन होते हैं। इस रूप में जैन प्रबन्धों पर वैदिक दर्शन की स्पष्ट छाप दिखायी देती है। जैनों का ईश्वर वीतरागी जिनदेव है। प्रत्यक्षतः उसकी अजेय शक्ति पर विश्वास करते हुए संकट के समय उससे रक्षा की याचना या आह्लाद के समय उसकी भावभीनी स्तुति की गयी है या कम से कम उसका इसी रूप में स्मरण किया गया है। 'सीता चरित' में रावण द्वारा सीता का अपहरण किये जाने पर निरीह अवस्था में सीता सहायता के लिए परोक्ष शक्ति को पुकार उठती हा हा देव कहा भयो, सीता करे विलाप ।' इसी प्रकार 'शीलकथा' की मनोरमा संकटवेला में "जिनवर' की शरण गहती है : फिर मन गाढ़ौ तिन कीनी । उर में प्रभु शरण तो लीनो। अब जिनवर शरण तुम्हारी । दूजो कोई न हमारो ।' जैसे राम अथवा कृष्ण के रूप में विष्णु के अवतार लेने पर जनेतर कवियों ने इन्द्रादि देवताओं द्वारा उनकी स्तुति और पूजा कराई है, वैसे ही आलोच्य कवियों ने भी तीर्थंकरों के ईश्वरत्व में विश्वास प्रकट करते हुए इन्द्रादि द्वारा उनके गर्भ में आने, जन्म लेने, तप करने, केवलज्ञान होने और निर्वाण प्राप्त करने के अवसरों पर स्तुति कराई है।' दान दान का सम्बन्ध उस त्याग से है, जो हृदय में औदार्य की सृष्टि कर १. सीता चरित, पद्य ६११, पृष्ठ ५० । २. शील कथा, पृष्ठ ३८ । १. पार्श्वपुराण, पद्य ६२, पृष्ठ १०३, अधिकार ६।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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