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________________ ३४५ नैतिक, धार्मिक एवं दार्शनिक परिपार्श्व आगमन होता है। गुरु-संगति से ही शिव-सुख की उपलब्धि होती है। वह करुणानिधि और सुखराशि है। उसे सबका हित प्रिय है । उसी के साहचर्य से मनुष्य अनन्त चतुष्टय रूप हो जाता है। गुरु के बिना मुक्ति की राह बताने वाला और कोई नहीं है। गुरु के साथ ही वाणी का वरदान देने वाली सरस्वती भी विस्मरणीय नहीं है। सरस्वती कतिपय प्रबन्धकाव्यों में मंगलाचरण के रूप में श्रद्धा और भक्ति-भाव से सरस्वती को मनाना, उसका स्मरण और वंदन करना कवियों को अभीष्ट रहा है, यथा : (१) देहु सुमति मोहि शारदा माय ।' (२) जादों पति कुल वंस वधाई गाऊँ। निहचै करि सारदहि मनाऊँ ॥ (३) दूजा सारद ने विसतरू। बुधि प्रकाश कवित्त उचरू ॥ कहना न होगा कि आलोच्य कृतियों में अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु एवं गुरु श्रद्धा के प्रमुख आधार-स्तंभ हैं । उनकी स्मृति भक्त के हृदय में प्रफुल्लता और प्रकाश फेंकती है। शुभाशुभ समय में भक्त उन्हें याद किये बिना नहीं रहता। धार्मिक जगत् में श्रद्धा के पश्चात् विश्वास का स्थान पहले आता है । देखिये : विश्वास श्रद्धा की भांति विश्वास भी धर्म का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है । १. सीता चरित, पद्य ६४४, पृष्ठ ३७ । २. नेमिचन्द्रिका, पद्य १, पृष्ठ १। ३. नेमिनाथ मंगल, पद्य ३, पृष्ठ १ । *. बंकचोर की कथा, पद्य १, पृष्ठ १ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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