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________________ ३१८ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन आलोच्य प्रबन्धकाव्य और शैलियाँ ____ आलोच्य प्रबन्धकाव्यों में जिन अनेक शैलियों को अपनाया गया है, उनमें इतिवृत्त, उपदेश, संवाद या प्रश्नोत्तर, निषेध, व्यंग्य या भर्त्सना, संबोधन, प्रबोधन, मानवीकरण या मूर्तीकरण, गीत या प्रगीत, सटेक गीत आदि शैलियाँ प्रमुख हैं। इतिवृत्त-शैली इसमें कवि की दृष्टि इतिवृत्त-निरूपण की ओर अधिक रहती है । 'पार्श्वपुराण', 'वर्द्धमान पुराण', 'वरांग चरित', 'जिनदत्त चरित', 'बकचोरकी कथा', 'दर्शन कथा', 'भद्रबाहु चरित्र', 'लब्धि विधान व्रतकथा', 'शान्तिनाथ पुराण', 'धन्यकुमार चरित्र' प्रभृति काव्यों में अधिक स्थलों पर इतिवृत्तात्मक शैली का व्यवहार हुआ है। इन प्रबन्धों में जहाँ कहीं इस शैली का आश्रय लिया गया है, वहाँ प्रसंग-विस्तार दृष्टिगोचर होता है। परिणामतः ऐसे स्थलों पर रसात्मकता गौण होकर कोरी इतिवृत्तात्मकता उभर आयी है। उपदेश-शैली हमारे काव्यों में ऐसा कोई काव्य नहीं है, जिसमें इस शैली का कहीं न कहीं प्रयोग न हुआ हो। कहीं उपदेश की बात दो-चार पंक्तियों में समाप्त हो गयी है, कहीं उसने विस्तार चाहा है। प्राय: यह शैली सीधी और (क) दर्शन कथा, पद्य ६० से ७७, पृष्ठ ९-१० । (ख) वर्द्धमान पुराण, पद्य ८२ से १२०, पृष्ठ ६६-१०३ । २. पार्श्वपुराण, पद्य १३० से २०८, पृष्ठ ३७-४२ । ३. 'शतअष्टोत्तरी' काव्य के अधिकांश स्थल । दुरजन पर दुष देषि के, मन मलीन मुख लाल । ज्यों त्रिय पर घर जायके, झूठे पीटत गाल ॥ -धर्म परीक्षा, पद्य ४२८, पृष्ठ २७ । ५. सीता चरित, पद्य २०२२ से २०५८, पृष्ठ ११५ से ११७ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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