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________________ ३०० जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन नहीं मिलती, फिर भी कुछ स्थलों पर इसका अच्छा प्रयोग हुआ है । उदाहरणार्थ : कालकूट विष सारिखो, कालकूट इह भील ।' यहाँ प्रथम स्थान पर 'कालकूट' विष के लिए और द्वितीय स्थान पर 'कालकूट' भील के नामरूप में प्रयुक्त हुआ है। यह सार्थक पदावृत्ति है। अन्य उदाहरण : देख कहा भूलि पर्यो, देख कहा भूलि पर्यो । देख भूलि कहा कर्यो, हर्यो सुख सब ही ॥ प्रस्तुत अवतरण में 'भूलि' शब्द की पुनरावृत्ति में यमक अलंकार है । आगे एक और उदाहरण देखिए : घरी एक देखो ख्याल, घरी की कहां है चाल, घरी घरी घरियाल शोर यों करतु है । इसमें 'घरी' शब्द की पुनरावृत्ति भिन्नार्थक है। इस स्थल पर यमकालंकार उक्ति वैचित्र्य और चमत्कार-प्रदर्शन के लिए प्रयुक्त हुआ है। श्लेष . विवेच्य काव्यों में श्लिष्ट शब्दों के व्यवहार का अत्यन्त अभाव दिखायी देता है । इससे स्पष्ट है कि उनके प्रणेता शाब्दिक चमत्कार के फेर में अधिक नहीं पड़े, तथापि कुछ कवियों में कथंचित श्लिष्ट शब्दों को अपने काव्यों में रखने की प्रवृत्ति दृष्टिगोचर होती है, जैसे : ___राजुल राजकुमारि विचारिक, संयमनाथ को हाथ गह्यो ।' १. जीवंधर चरित (दौलतराम), पद्य १२६, पृष्ठ ६ । २. शत अष्टोत्तरी, पद्य ३१, पृष्ठ १५ । ३. वही, पद्य २०, पृष्ठ १२ । । नेमि-राजमती बारहमास (जिनहर्ष), पद्य १३, पृष्ठ २१३ ।।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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