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________________ भाषा-शैली उच्छंगि लीयो देवकी, आंचल दूध चल्यो असमान तो । सारे अंग हुवो असनान तो ॥ ॥ रास भणों श्री नेमि को ॥ हली कलस ले ढालीयो, 'माता देवकी ने खेलते हुए कृष्ण को सस्नेह गोद में लिया, स्तन से दूध बहकर आसमान को छूने लगा' में देवकी के स्नेहातिरेक की मधुर व्यंजना है | 'हलधर ने तुरन्त देवकी के ऊपर दूध का कलश डाल दिया' में दृश्य पर परदा डालने की, कृष्ण को सुरक्षित रखने की व्यंजना है कि कोई कंस से जाकर यह न कह दे कि कृष्ण देवकी का पुत्र है । इस प्रकार यहाँ व्यंजना शक्ति का वैभव अत्यन्त हृदयस्पर्शी है । समास-रहित पदावली अधिकांश प्रबन्धकाव्य ऐसे हैं जिनमें प्रायः समास-रहित पदावली प्रयुक्त हुई है। इससे प्रतीत होता है कि प्रबन्ध-प्रणेताओं का दृष्टिकोण सरल भाषा के प्रयोग की ओर अधिक और बनाव-शृंगार की ओर कम रहा है । उनकी दृष्टि में सीधी-सादी शब्दावली काव्य के उद्देश्य को पूर्ण कर हृदय पर गम्भीर प्रभाव डालने में समर्थ हो सकती है । समास - रहित भाषा के कुछ उद्धरण देखिए : २. (क) सातों सुर को गायब, अद्भुत सुखमय इन कानन कर परखिये, मीठे-मीठे (ख) कहीं केलि करें बगुला तरु पैं, कहीं नाचत मोर हिये हुलसें । कहीं हंस फिरें सर के तट पै, कहीं क्रीड़ करें सबही जलसें ॥ (ग) नेमि कुमार अनबोलने अनबोले कछु न बसाय हो । जी जो बोले तासों बोलिये, अनबोले कछु न बसाय हो ॥ * स्वाद । नाद ॥ १. नेमीश्वर रास, पद्य १५४, पृष्ठ १० । २. पंचेन्द्रिय संवाद, पद्य ३३ ३४, पृष्ठ २४१ । जीवंधर चरित (नथमल बिलाला ), पद्य १६६, पृष्ठ ७७ । नेमिचन्द्रिका, पृष्ठ २७ ॥ २६३
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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