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________________ २८२ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन इस पद्यांश में उक्तिवैचित्र्य नहीं है, मधुर लय है। चित्त को सुखद अनुभूति कराने वाले संगीतात्मक एवं भावमय ये शब्द कर्णप्रिय हैं। अनुप्रास की सरसता भी इन शब्दों से टपकती है। भक्ति-भाव को प्रगाढ़ करने वाली यह कोमलकांत पदावली माधुर्य गुण से ओतप्रोत है । अन्य उदाहरण देखिए : फूली लतिका ललिता तरुन सब फूले तरुवर । बाजत मंद समीर पुष्प बरसावत भुम पर ॥' ___ यहाँ श्रुति-प्रिय ललित शब्दावली का प्रयोग है । 'फूली लतिका ललिता, तरुन सब फूले तरुवर' में शब्द-सौकुमार्य के साथ भाव-माधुर्य भी छलक रहा है। विकसित पुष्पों से युक्त लतिका के लिए 'फूली' शब्द का प्रयोग कितना आह्लादक है ! इसी प्रकार ध्वनिपूरित मंद समीर द्वारा धरती पर पुष्पों की वर्षा करने के लिए 'पुष्प बरसावत भुम पर' का प्रयोग भी कम हृदयस्पर्शी नहीं है । ऐसी ही कुछ और पंक्तियाँ लीजिए : ललित वचक लीलावती, सुभ लच्छन सुकुमाल । सहज सुगंध सुहावनी, जथा मालती माल ॥ सील रूप लावन्य निधि, हाव भाव रस लीन । सोभा सुभग सिंगार की, सकल कला परवीन ॥ इन दोहों में कोमल और मधुर वर्णों का उपयोग किया गया है । कर्णकटु अक्षरों-ट, ठ, ड, ढ आदि के प्रयोग से कवि बचा है । माधुर्य की सृष्टि के लिए अनुप्रास अलंकार का सहारा लेते हुए कोमल वर्णों, यथा-ल, स, म, न, र को विशेषतः स्थान दिया गया है । पूरा अवतरण 'नारीगत' गुणों को, उसकी रूप-राशि को प्रकाशित कर रहा है । इसी प्रकार माधुर्य गुण को व्यंजित करने वाला प्रस्तुत स्थल भी देखिए : .. जिनदत्त चरित (बख्तावर मल), पद्य ४२, पृष्ठ ६५ । २. पावपुराण, पद्य १६४-६५, पृष्ठ ७०-७१ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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