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भाषा-शैली
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'सीता चरित', ' 'यशोधर चरित', 'आदिनाथ बेलि', 'रत्नपाल रासो', 'श्रेणिक चरित', ' ' नेमि - राजमती बारहमासा सवैया', 'नेमीश्वर रास', 'नेमिनाथ चरित', ' 'यशोधर चरित', 'प्रीतंकर चरित', 'लब्धि- विधान व्रतकथा', 'भद्रबाहु चरित' आदि प्रबन्धकाव्यों की भाषा में राजस्थानी बोलियों का पुट दिखायी देता है । उनमें कुण, घणे, लार ( साथ), पाणी, पनि, पणि, जाण, जाणे, वैण, ऊपर (ऊपर), तिण, आपणो, ततषिण, भरथ (भरत), अर, दौन्यू, दौन्यां, स्यू, करसी, सुणिज्यो, थकी, भणों, भणी, तणी, द्यौ (दो, दीजिये), पसीनो, चलण, कम्बलो, सुणि, फैलस्या, दुषां स्यौं, फुनि, तिष्ठौ, पालण, वणी, कानां (कान), कीया, राल्यो, कह्या, हिरदा, जीवड़ा, बांध्या, नयण, केसी (केसव ), मेल्यो, मेल्यां, पहुंता ( पहुँचा ), अहला, वेसिया,
मित्र मिलान ।
१. (क) मिले बहुत आणद जान । जैसे बिछ - सीता चरित, पद्य १३६६, पृष्ठ ७६ । (ख) स्वांग तुरत पलट्यौ तहाँ कियो कन्यका रूप । रामर लछिमन स्यौं कहयौ, बरौ मोहि तुम भूप ॥
— वही, पद्य ८७६, पृष्ठ ४६ ।
२.
नरक तणी गति निश्चै बांधी, महा कुमति चित लावे | अधिक विलाप करें महादेवी, त्योंही जक नहि पावै ॥ हो भाई राजा क्रोध उमावै ॥
३. बादर तौ अब आदर
- श्रेणिक चरित, पद्य ७२३, पृष्ठ ५० । कीनो, अवाज भई युं घनाघन की । ऋतु पावस जाणि आये विदेशी, निवारणि जारि विधातनि की ॥ - नेमि - राजमती बहारमास सर्वया, पद्य १२, पृष्ठ २१३ ॥
रुदन करें अति ही घणौ, पसु जाति सब देख आय तो । वे भी रुदन करें अति घणा, सबयन कू दुष व्याप्यौ राय तौ ॥ रास भणौं श्री नेमि कौ ॥
४.
५.
— नेमीश्वर रास, पद्य १२३१, पृष्ठ ७२ ।
पहुँची पीव पास ही जाई । सुणिज्यो प्रभु तुम चित लाई । हम कौन गुनहों तुम कीयो । परण्या बिनि ही दुष दीयो ||
— नेमिनाथ चरित, पद्य १०३ ।