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रस- योजना
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ऊपर आलोच्य कृतियों में नियोजित वीर रस को एक सीमित परिधि के भीतर अनुशीलित किया गया है; किन्तु उनमें अन्य रसों की योजना को भी भुलाया नहीं जा सकता ।
रौद्र रस
'चेतन कर्म चरित ', ' ' पार्श्वपुराण, " 'शील कथा," 'सीताचरित', 'नेमीश्वर रास" प्रभृति प्रबन्धकाव्यों में अधिकांशतः वीररसात्मक स्थलों
(क) चेतन कर्म चरित, पद्य १४, पृष्ठ ५६ । (ख) वही, पद्य - १०, पृष्ठ ५६ ।
(ग) वही, पद्य १५७ से १६१, पृष्ठ ७१ ।
२. (क) पार्श्वपुराण, पद्य १६८ - १६६, पृष्ठ ४१ । (ख) कोप्यो अधिक न थाम्यो जाय ।
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राते लोयन प्रजुली काय ॥ - वही, पद्य १८, पृष्ठ १२३ । वैसांदर ज्यौं घृत डारौं । तैसे भूपति परजारौ ॥ तुरतहिं किंकर बुलवाये । तिनसौं तब हुकम कराये ॥ कुमरा को बांध के लावौ । डेरन ते मुसक चढ़ावो ॥ अरु शूली पर धर दीजै । धनमाल लूट सब लीजै ॥
- शीलकथा, पृष्ठ ५१ ।
१.
३.
४.
(क) सीता चरित, पद्य १४८७-८८, पृष्ठ ८२ । (ख) यक्ष उठे अति कोप करि, पीड़ा देखी लोक । क्रोध करि उठे तुरत, दल बादर को रोक ॥
(ग) तबहि लक्ष्मन देष
- वही, पद्य १७४५, पृष्ठ ४८ । असास । चालो सनमुख इम भास । रे दुष्ट महा पामिष्ट अयान । हीन पुरुष अरु मद की बान ॥
- वही, पद्य ११९१, पृष्ठ १०७ । जैसे तेलर अगनि मिलाय तौ ।। मुझते कंप दीप अढाय तौ ॥
॥ रास भणों श्री नेमि को || - नेमीश्वर रास, पद्य २३६, पृष्ठ १५ ।
(क) इम नारद प्रजल्यो घणों, सीष देण मुझनें लगी,
(ख) वही, पद्य ७८३, ७६२, पृष्ठ ४६ ।