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________________ रस- योजना २४३ ऊपर आलोच्य कृतियों में नियोजित वीर रस को एक सीमित परिधि के भीतर अनुशीलित किया गया है; किन्तु उनमें अन्य रसों की योजना को भी भुलाया नहीं जा सकता । रौद्र रस 'चेतन कर्म चरित ', ' ' पार्श्वपुराण, " 'शील कथा," 'सीताचरित', 'नेमीश्वर रास" प्रभृति प्रबन्धकाव्यों में अधिकांशतः वीररसात्मक स्थलों (क) चेतन कर्म चरित, पद्य १४, पृष्ठ ५६ । (ख) वही, पद्य - १०, पृष्ठ ५६ । (ग) वही, पद्य १५७ से १६१, पृष्ठ ७१ । २. (क) पार्श्वपुराण, पद्य १६८ - १६६, पृष्ठ ४१ । (ख) कोप्यो अधिक न थाम्यो जाय । 1 राते लोयन प्रजुली काय ॥ - वही, पद्य १८, पृष्ठ १२३ । वैसांदर ज्यौं घृत डारौं । तैसे भूपति परजारौ ॥ तुरतहिं किंकर बुलवाये । तिनसौं तब हुकम कराये ॥ कुमरा को बांध के लावौ । डेरन ते मुसक चढ़ावो ॥ अरु शूली पर धर दीजै । धनमाल लूट सब लीजै ॥ - शीलकथा, पृष्ठ ५१ । १. ३. ४. (क) सीता चरित, पद्य १४८७-८८, पृष्ठ ८२ । (ख) यक्ष उठे अति कोप करि, पीड़ा देखी लोक । क्रोध करि उठे तुरत, दल बादर को रोक ॥ (ग) तबहि लक्ष्मन देष - वही, पद्य १७४५, पृष्ठ ४८ । असास । चालो सनमुख इम भास । रे दुष्ट महा पामिष्ट अयान । हीन पुरुष अरु मद की बान ॥ - वही, पद्य ११९१, पृष्ठ १०७ । जैसे तेलर अगनि मिलाय तौ ।। मुझते कंप दीप अढाय तौ ॥ ॥ रास भणों श्री नेमि को || - नेमीश्वर रास, पद्य २३६, पृष्ठ १५ । (क) इम नारद प्रजल्यो घणों, सीष देण मुझनें लगी, (ख) वही, पद्य ७८३, ७६२, पृष्ठ ४६ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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