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________________ भूमिका २५ (७) उनमें चतुवर्ग फलों में से धर्म और मोक्ष को प्रधानता दी गयी है। (८) उनमें अनेक ऐसी भूमियों का विधान रखा गया है, जिससे नायक या नायिका निरन्तर अनेक संघर्षात्मक परिस्थितियों में पड़कर धैर्य, साहस और विवेकपूर्ण आचरण द्वारा अपना अभीष्ट फल प्राप्त कर सके । (8) उनकी शैली विविधरूपिणी है। उनमें यथावसर अनेक शैलियों का विधान उपलब्ध होता है, जैसे-वर्णनात्मक, सिद्धान्त-प्रतिपादन, उपदेश, संबोधन, प्रबोधन, भर्त्सना, निषेध, संवाद, रूपक, मानवीकरण, भावमूर्तीकरण, गीत, प्रगीत, सटेक गीत आदि । कतिपय प्रबन्धों की शैली लोकगीतों के अधिक निकट है। उनमें स्थल-स्थल पर अनेक राग-रागिनियों, देशियों एवं ढालों का विपुल प्रयोग हुआ है। सारांश यह है कि आलोच्य प्रबन्धकाव्य धार्मिक वृत्तियों से प्रेरित होकर भी साहित्यिक क्षेत्र में समकालीन नव्यताएँ लेकर अवतीर्ण हुए हैं, जिनके अन्तर्गत नये छन्द भी हैं और नये राग भी हैं। उनके नायकों में सुधारक की प्रवृत्ति भी विद्यमान है और भाषा में ब्रजभाषा की समकालीन गरिमा भी व्याप्त है । हाँ, कहीं-कहीं ब्रजभाषा स्थानीय प्रभावों से सम्पुटित दृष्टिगोचर होती है।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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