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२०२ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन कर्मों की माला अपने गले में डालें और अपने जीवन-पथ को कंटकाकीर्ण कर दूसरों के प्रशस्त पथ में अवरोध बनकर खड़े रहें।
रावण
कमठ जैसा ही चरित्र रावण का है। वह 'सीता चरित' काव्य का प्रतिनायक है। उसके चरित्र की कतिपय रेखाएँ उसके द्वारा सीता-हरण, मन्दोदरी-संवाद, सीता के हृदय पर विजय का प्रयास, रामयुद्ध आदि के प्रसंगों में उभरी हैं।
रावण ऐश्वर्यशाली, अनेक विद्याओं का धारक, कूटनीतिज्ञ, निर्भीक, साहसी और पराक्रमी है। साथ ही वह अहंकारी, क्रूर, क्रोधी और रागान्ध है । वह अपने प्रत्येक कार्य की सिद्धि के लिए उचित-अनुचित सभी उपायों का आश्रय लेता है । वह सीता को वशीभूत करने के प्रयास में प्रत्येक सम्भव कदम उठाता है। वह उसे अपनी शरण में आने के लिए भय और त्रास का पुज ही उसके सम्मुख रख देता है। उसकी इस प्रक्रिया में न केवल उसकी विषयातुरता ही झलकती है, अपितु इससे उसकी सिद्धियों का भी पता चलता है :
जाकी डाढ़ महा विकराल । पंजा अति तीषन कराल । तिन देष धीरज नहिं रहै । सीअ रावण सरण नहिं गहै ॥ आयो पन्नग फण करि डंड । जीभ चपल क्रोधी परचंड । जाकी हूक जल वन राय । सीता रही बहोत भै षाय ॥
उसे अपनी वीरता का अभिमान है; किन्तु उसकी वीरता उसकी मदांधता में छिप जाती है । जब मन्दोदरी सीता पर विजय पाने की उसकी
.. सीता चरित, पद्य १८७७ से १८७६, पृष्ठ १०५ । २. वही, पद्य ९६४, पृष्ठ ५४ । '. वही, पद्य ६६८ से १०००, पृष्ठ ५५ ।
वही, पद्य ९७१-७२, पृष्ठ ५३ ।