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________________ चरित्र-योजना चारित्र रूप रत्नत्रय ही निवृत्ति मार्ग है। एक बार मौन साध लेने पर संसार की महाशक्ति भी उनका मौन भंग करने में असमर्थ रहती है।' इसी प्रकार सभी तीर्थंकरों को मुक्ति-वधू से प्रीति होती है और इसी को प्राप्त करने के लिए वे जीवन भर साधना करते हैं । संसार का सौन्दर्य उन्हें धूलिवत् लगता है और उसकी ओर वे किंचित भी आकृष्ट नहीं होते।' इतना सब होते हुए भी यह स्वीकार्य है कि कवियों की अतिशय भक्तिभावना के कारण उनके चरित्र की विविध भूमियों का समुचित विकास नहीं हो सका है । उनके चरित्र में स्थैर्य अधिक और गतिशीलता कम है । उनका संघर्ष जीवन की विस्तृत परिधि को नहीं घेरता । उनके मनोभावों अथवा कार्य-व्यापारों से चरित्रविषयक अनेक परतें नहीं खुलतीं। फिर भी अनेक दृष्टियों से उनके चरित्र का महत्त्व अविस्मरणीय है । अन्य आदर्श चरित्र विवेच्य काव्यों में तीर्थंकर चरित्र जितने समादरणीय हैं उतने ही ये चरित्र भी । कहना न होगा कि कवियों ने इन पात्रों के माध्यम से चरित्र की विभिन्न भूमियों का अवलोकन कराया है। इनके शील-विवेचन में उन्होंने मनोवैज्ञानिक दृष्टि से काम लिया है और व्यापक परिधि के भीतर इन्हें चित्रित किया गया है । इनमें पुरुष पात्रों में राम, लक्ष्मण, भरत, हनुमान, कृष्ण, यशोधर, श्रोणिक, सुखानन्द, राजा, सेनापति आदि और नारी पात्रों में सीता, कौशल्या, शिवदेवी, वामादेवी, कुंती, द्रौपदी, मन्दोदरी, मनोरमा, राजुल आदि उल्लेखनीय हैं । १. नेमिकुमार अनबोलने अनबोले कछु न वसाय हो । एजी जो बोले तासों बोलिए, अनबोले कछु न वसाय हो । नेमिकुमार........ ... -नेमिचन्द्रिका (आसकरण), पृष्ठ २७ । २. पार्श्वपुराण, पद्य १३१, पृष्ठ १२० ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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