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________________ १६४ जैन कवियों के व्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन चउवन ढालों में रूपायित किया है। प्रस्तुत कृति में आद्यंत देशी संगीत के स्वर का गुंजन है । उसकी वस्तु-योजना से कृतिकार की मौलिक सूझ का परिचय मिलता है। कवि ने अपनी प्रतिभा से उसे उत्कृष्ट भाव-प्रबन्ध का रूप दिया है। धार्मिक या नैतिक __ इस श्रेणी के प्रबन्धों में भारामल्ल कृत 'शीलकथा', 'दर्शनकथा', 'चारुदत्त चरित्र', 'नथमल कृत 'बक चोर की कथा', विनोदीलाल कृत 'फूलमाल पच्चीसी' आदि महत्त्वपूर्ण कहे जा सकते हैं । इनके कथानक प्रायः काल्पनिक हैं। 'फूलमाल पच्चीसी' को छोड़कर शेष काव्यों के सम्बन्ध में कहा जा सकता है कि इनके कथानक लोककथाओं पर आधत हैं। इनके प्रणेताओं ने धार्मिक या नैतिक आदर्शों की प्रतिष्ठा के निमित्त इनका प्रणयन किया है। उनकी धार्मिक भावना इनमें स्थल-स्थल पर उभरी है । 'फूलमाल पच्चीसी' कवि की मौलिक कृति है। उसका कथानक न पौराणिक है, न ऐतिहासिक; वह तो पूर्णतः कल्पना-प्रसूत है । मनोभावों के पारखी और एक सच्चे चित्रकार की भाँति चित्र उतारने वाले कवि ने एक सच्चा चित्र हिन्दी-साहित्य को दिया है । दार्शनिक या आध्यात्मिक ___ इस वर्ग के प्रबन्धकाव्यों में प्रमुखतः भैया भगवतीदास के खण्डकाव्य आते हैं । इनके काव्यों की भित्ति दार्शनिक या आध्यात्मिक पृष्ठभूमि पर आधारित है। इनमें प्रायः अरूप का रूप-विधान करने वाली शैली का आश्रय लिया गया है और इस प्रकार तत्त्व-चिन्तन का गूढ़ धरातल सरलतम रूप में व्यक्त हुआ है । ये चिन्तन-प्रधान काव्य हैं जिनमें आत्मा की विविध भूमियों का सुन्दर निदर्शन भावक को चेतना-शक्ति देता है। ऐसी रचनाओं में 'चेतन कर्म चरित्र', 'शतअष्टोत्तरी', 'सूआ बत्तीसी', 'पंचेन्द्रिय संवाद' आदि प्रमुख हैं।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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