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________________ प्रबन्धत्व और कथानक स्रोत 'पार्श्वपुराण' के नायक तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ हैं। उनके जीवनवत्त के आधार पर हवीं शताब्दी से लेकर १७वीं शताब्दी तक अनेक भाषाओं में अनेक कृतियों का प्रणयन होता रहा । इस दिशा के जिनसेन कृत 'पार्वाभ्युदय', शीलंकाचार्य कृत 'चउपन्न महापुरुष चरियं, वादिराज कृत 'पार्श्वनाथ चरित', पद्मकीर्ति कृत 'पासणाह चरिउ' के अलावा माणिक्यचन्द्र सूरि, भावदेव सूरि, सर्वानन्द, मेरुतुग, सकलकीर्ति, पद्मसुन्दर, हेमविजय, चन्द्रकीति, विनयचन्द्र, उदयवीर गणि प्रभृति कवियों के काव्य उल्लेखनीय हैं। कवि भूधरदास ने 'पार्श्वपुराण' के कथा-स्रोत के लिए अपनी पूर्ववर्ती रचनाओं में से किसी एक को पृष्ठाधार के रूप में स्वीकार नहीं किया है । इस काव्य का कथानक परम्परा से बहुत दूर हटकर नहीं चला है । उसका इतिवृत्त निश्चित ही पौराणिक है और उसमें पुराण काव्यों की विशेषताएं समाविष्ट हैं, किन्तु उसकी व्यवस्था नयी है, उसका परिवेश नया है । दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि उस काव्य का कथानक पूर्ववर्ती काव्य-परम्परा से मेल खाता है, लेकिन उसकी घटनावली की योजना नयी है और उसमें अनेक स्थलों पर नवीन उद्भावनाओं को प्रश्रय मिला है। कवि नेमिचन्द्र द्वारा 'नेमीश्वर रास' का कथानक स्वयं कवि के शब्दों में 'नेमिनाथ पुराण' एवं 'हरिवंश पुराण' से ग्रहण किया है । इस काव्य के कथानक में उक्त दोनों रचनाओं का संक्षिप्त सार समाहित है। इसके प्रणयन में कृतिकार ने अपनी स्वतंत्र प्रतिभा और मौलिक सूझ से काम लिया है। यह गीति-शैली में रचा गया है जिसमें स्थल-स्थल पर कवि की अनुभूति की तीव्रता उभर आयी है। यह काव्य कवि की अभिनव चिन्तनाशक्ति का प्रतीक है। अजयराज पाटनी विरचित 'नेमिनाथ चरित' के कथानक-स्रोत का पता लगाना कठिन है क्योंकि इसमें नायक नेमिनाथ के जीवन की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटनाओं को आकलित किया गया है और ये घटनाएँ प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी आदि भाषाओं की प्राय: सभी रचनाओं में प्रकारान्तर से उपलब्ध हो जाती हैं, यथा-'चउपन्न महापुरुष चरियं'
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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