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________________ १५४ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन ___इसी प्रकार काव्य में नारी-रूप-वर्णन,' तप-वर्णन, पूजा-वर्णन' आदि भी ललित हैं। _ 'यशोधर चरित' के कथा-विधान में व्यतिरेक होते हुए भी वातावरण, पीठिका एवं परिस्थिति से सम्बद्ध विविध वर्णनों की उचित संयोजना से वस्तु-व्यापार-वर्णन जीवन्त प्रतीत होते हैं। मूल कथावस्तु पर आने के लिए कवि ने काव्यारंभ में जम्बू द्वीप, भरतक्षेत्र, आर्यखण्ड एवं जोधदेश का विस्तार से वर्णन किया है। जोधदेश के व्यापक वर्णन के प्रसंग में गढ़, खाई, शिखर, भवन, ध्वजा आदि का भी वर्णन एक ही शृंखला में हुआ है। नगर-निवासियों का वर्णन विशिष्ट शैली में हुआ है। राज-प्रासाद वर्णन तत्कालीन कला-सौन्दर्य प्रियता की अच्छी झलक प्रस्तुत करता है : रतन कांति भीतन को सार । उज्जल अति सौभै अंतरार ॥ रतन जड़ित धरणी अबिकार । दूजे षणि चढ़ि हरषि अपार ॥ तहाँ सहेली गूथें फूल । माला हार बना थूल ॥ ताहि सुबास अधिक फैलाय । गूज करै षटपद अधिकाय ।। तीज षण चढ़ि भूप प्रवान । फटक राग मणिमय सोपान ॥ जुवती जन जहिं क्रीड़ा करे । महिला अधिक सोभा कौंधरे ।। चौथे महल गयो भूपार । हरित रतन मय सोभा सार ।। सुवा की पंकति सो हुई । बैन सबै के मन मोहई॥ प्रस्तुत काव्य में जीवन और जगत् से सम्बद्ध इतने अधिक वर्णनों का सन्निवेश हुआ है कि उनकी गणना करना कठिन है। मालव देश के १. श्रेणिक चरित, पद्य २४, पृष्ठ ३ । २. वही, पद्य १२१० से १२१८, पृष्ठ ८२-८३ । ३. मलिनातम कोई नहीं है । है तो तिय केस सही है ।। जन मांहिन पातन नाहीं। है धात सार सुत मांही ।। भ्रम नाम जहाँ न कहावै । नरां के विभ्रम भावै॥ -यशोधर चरित, संधि १ । • यशोधर चरित, संधि ३ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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