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जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
कवि ने अनेक स्थलों पर लम्बे वर्णनों का भी आश्रय लिया है।' वह वन का वर्णन करते हुए नाना प्रकार के पेड़-पौधों के नाम गिनाने में इतना तन्मय हो गया है कि उसने प्राकृतिक गरिमा को ही भुला दिया है :
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'नेमीश्वर रास' में अनेक वस्तु-वर्णनों का विनिवेश है । वस्तु-वर्णन प्रायः संक्षिप्त और सरस हैं । नगर, वन, जन्म, विवाह, शकुन, तप, स्वप्न,' युद्ध आदि के वर्णन सुन्दर बन पड़े हैं । किन्तु कहीं-कहीं कुछ दृश्य स्वाभाविक कम और रूढ़ अधिक दिखायी देते हैं । उदाहरण के लिए कृष्ण के बालस्वरूप वर्णन में कवि का ध्यान बालक के सूक्ष्म चित्रण के स्थान पर मुकुट, पीताम्बर, कर्ण - कुण्डल, वंशी एवं गोपिकाओं से घिरी हुई अवस्था में निर्देशित करने की ओर रहा है । परन्तु ऐसे वर्णन थोड़े हैं । कुछ दृश्यों की योजना में कवि ने मौलिक दृष्टि से काम लिया है । कृष्ण की ओर दौड़ते हुए कालिया नाग की विकरालता का यह चित्र रूप प्रस्तुतीकरण में सहायक है :
१.
२.
पाकर पीपल पूग प्रियंग | पीलू पाटल पाढ़ पतंग || गौंदी गुड़हल गूलर जान । गांडर गुंजा गोरख पान ॥ पंचा चीढ़ चिरोंजी फली । चन्दन चोल चमेली भली ॥ जंड जंभीरी जामन कोट । नीम नारियल हींस हिंगोट || सोना सीसम सेंमल साल । सालर सिरस सदा फलजाल ॥ बाँस बबूल बकायन बेर । बेत बहेड़ा बड़हल पेर ॥ महुआ मौलसिरी मचकुंद । मरुवा मोखा करना कुन्द ॥ तूत तबलनि तींदू ताल । तगर तिलक तालीस तमाल ॥
(क) पार्श्वपुराण, पद्य ६५ से १२३, पृष्ठ १२८ से १३३ ।
(ख) वही, पद्य २४ से २६०, पृष्ठ १४१ से १६८ ।
पार्श्वपुराण, पद्य ४० से ४३, पृष्ठ ७९-८० ।
३. नेमीश्वर रास, पद्य ३६०, पृष्ठ ३६० ।
५.
४. वही, पद्य ८३४-३५, पृष्ठ ४८ ।
वही, पद्य ६२४- २७, पृष्ठ ३६-३७ । ६. वही, पद्य १४८ - ४६ पृष्ठ १० ।