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________________ १४६ जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन संवाद', 'शत अष्टोत्तरी', 'दर्शन कथा', 'निशि भोजन कथा' आदि खण्डकाव्यों में मार्मिक स्थलों की संयोजना समुचित प्रकार से नहीं हो पायी है । यद्यपि उनमें प्रबन्ध - शैथिल्य तो दृष्टिगोचर नहीं होता, परन्तु रसात्मक स्थलों का अभाव अवश्य ही परिलक्षित होता है । उनमें कथा के मध्य विराम भी नाममात्र को ही उपलब्ध होते हैं । उनके प्रणेताओं की दृष्टि इतिवृत्तात्मक एवं वर्णनात्मक पक्षों की ओर अधिक रही है । आलोच्य प्रबन्धकाव्य और दृश्यों की स्थानगत विशेषता 'पार्श्वपुराण' में कवि ने प्रायः दृश्यों के स्थान और उनकी विशेषताओं को ध्यान में रखकर वर्णनों की योजना की है । काव्य में विविध वस्तु - वर्णनों, जैसे द्वीप, नगर, मंदिर, समवशरण', पुरुष - स्त्री रूप, बाल- शृंगार, ल-क्रीड़ाओं, पंच कल्याणकों, तप, स्वर्ग-नरक, वन-बाग आदि कितने ही हृदयग्राही वर्णनों का समावेश है । बाल - शृंगार - वर्णन कवि की कला - त्मकता से सम्पुटित है : बाल १. २. तहाँ नगर पोदनपुर नाम । मानों भूमितिलक अभिराम || देवलोक की उपमा धरं । सब ही विध देखत मनहरें || बाग गृह-पांति || पुर बहुभांति || तुंग कोटि खाई सजल, सघन चौपथ चौक बजारसों, सोहै ठाम ठाम गोपुर लसैं, वापी किधों स्वर्ग ने भूमिकौं, भेजी भेंट अनूप ॥ सरवर कूप ॥ - पार्श्वपुराण, पद्य ४७ से ४६, पृष्ठ ७ । क) तीर्थकरों के उपदेश का स्थल । (ख) विविध वरन सों वलयाकार । झलके इन्द्र धनुष उनहार ॥ कहीं स्याम कहिं कंचन रूप । कहिं विद्रुम कहि हरित अनूप ॥ समोसन लछमी को एम । दिप जड़ाऊ कुडल जैम ॥ चारों दिसि तोरन बन रहे । कनक थंभ ऊपर लहलहे ॥ ३. वही, पद्य १७ से १६, पृष्ठ १०८ । ४. गर्भ, जन्म, तप, केवलज्ञान और निर्वाण | - वही, पृष्ठ १२८ |
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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