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________________ परिचय और वर्गीकरण १२३ सकता है ।'' उसका प्रतिपाद्य चाहे कोई चरित्र, घटना, परिस्थिति विशेष या कोई सामयिक अथवा जीवन-दर्शन सम्बन्धी सत्य हो, कवि अपने व्यक्तित्व का उसके साथ अपेक्षाकृत तादात्म्य कर लेता है । उसकी वस्तु भावात्मक अधिक होती है, अतः गीतिकाव्य की भाव- प्रवणता और तीव्र अनुभूति उसमें जितनी अधिक होती है, उसका प्रभाव भी उतना ही अधिक होता है ।" खण्डकाव्यकार नायक के चयन में भी पूर्णतः स्वतन्त्र होता है । 'उसका नायक सुर, असुर, मनुष्य, इतिहास प्रसिद्ध अथवा कल्पित या शान्त, ललित, उदात्त और उद्धत में से किसी भी प्रकार का हो सकता है ।" यहाँ तक कि कुशल कवि एक अमूर्तभाव या अमूर्त तत्त्व को मूर्त रूप देकर उसे नायकत्व प्रदान कर सकता है । खण्डकाव्यविषयक उपर्युक्त बिन्दुओं के लक्षित होता है कि आलोच्यकाल में सर्वाधिक रूप में ही रचे गये । उनका नामकरण भी अनेक आधारों पर हुआ है । उनमें से अधिकांश में कहीं समग्रतः और कहीं स्थल विशेष पर गेय शैली का सहारा लिया गया है । कुछ खण्डकाव्यों में प्रबन्ध के साथ ही मुक्तक का भी आनन्द मिलता है । अनेक ' ढालों' के प्रयोग से उनमें रमणीयता उभर आयी है । संगीत और साहित्यिकता के स्पर्श से उनका धार्मिक धरातल लुभावना बन गया है । वास्तव में आलोच्य खण्डकाव्यों में विषय और शैली की दृष्टि से अनेक भेदक रेखाएँ लक्षित होती हैं, अतः उन्हें भी स्थूल रूप से इन वर्गों में रखा जा सकता है : १. आधार पर यह स्पष्ट परिप्रबन्धकाव्य खण्डकाव्यों के २. (१) पौराणिक आख्यानों पर आघृत खण्डकाव्य, यथा- 'नेमिचन्द्रिका', 'आदिनाथ वेलि', 'पार्श्वनाथ के कवित्त', 'नेमिनाथ के कवित्त', 'नेमिनाथ मंगल', 'नेमि ब्याह' आदि । हिन्दी साहित्य कोश, पृष्ठ २४८ । डॉ० सियाराम तिवारी : हिन्दी के मध्यकालीन खण्डकाव्य, पृष्ठ ५१ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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