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________________ परिचय और वर्गीकरण प्रबन्धकाव्य के एक अंग अवश्य हैं। हमारे युग में कतिपय बारहमासा काव्य प्रबन्ध-निर्वाह की दृष्टि से सफल हैं और उनका प्रणयन प्रबन्धकाव्य तत्त्वों के आधार पर ही हुआ है, अतः उन्हें प्रबन्धकाव्य की सीमा के अन्तर्गत रख लिया गया है । उनमें भावात्मकता अधिक है, अतः उन्हें भावप्रबन्ध की संज्ञा दी जा सकती है; जैसे-'नेमि-राजुल बारहमासा' आदि । छन्द-संख्या नामान्त आलोच्य प्रबन्धों में कुछ संख्या नामान्त प्रबन्धकाव्य भी उपलब्ध होते हैं; यथा-'राजुल पच्चीसी', 'शतअष्टोत्तरी', 'फूलमाल पच्चीसी', 'सूआ बत्तीसी' आदि । इन रचनाओं का नामकरण छन्द या पद्य संख्या के आधार पर हुआ है। यहाँ यह उल्लेख्य है कि प्रायः संख्या नामान्त कृतियाँ मुक्तक रूप में अधिक प्राप्त होती हैं, प्रबन्ध रूप में कम । विवेच्ययुगीन जैन कवियों में 'सतसई', 'शतक', 'बहत्तरी', 'बावनी', 'छत्तीसी', 'बत्तीसी', 'पच्चीसी' आदि लिखने की प्रवृत्ति बहुत देखी जाती है । ये कृतियाँ मुक्तकों के साथ प्रबन्ध रूप में भी मिलती हैं। संवाद नामान्त जिन प्रबन्धकाव्यों में 'संवाद' तत्त्व की प्रचुरता है, उन्हें यह नाम दिया गया है; यथा-पंचेन्द्रिय संवाद', 'नेमि-राजुल संवाद'। इस वर्ग की रचनाओं में प्रबन्धात्मकता सुरक्षित रही दिखायी देती है। विषय की दृष्टि से वर्गीकरण विषय-वस्तु की दृष्टि से आलोच्य काव्य-ग्रन्थों को सामान्यतया तीन वर्गों में विभक्त किया जा सकता है : (१) ऐतिहासिक या पौराणिक (२) दार्शनिक या आध्यात्मिक (३) धार्मिक या नैतिक
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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