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कविवर वनारसीदास
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काया नगरी के भीतर मेरा प्यारा चेतन राजा रहता है। वह अनंत बल वाला और ज्योति स्वरूप है उसके ऊपर कर्म का लेप चढ़ा हुआ है।
हे प्यारे चेतन ! तू मोह की नीद में बेहोश होकर मत सो अरे सावधान हो। देख! ये (क्रोध, मान, माया, लोभ) चार चोर तेरा सारा माल खजाना लूटे लिए जाते हैं।
प्यारे चेतन! तू अचेतन (जड़ शरीर ) की संगति से जड़ रूप बन गया है और जिस तरह चकमक में आग नहीं दिखती उसी तरह से तुझे आत्मरूप नहीं दिखता।
हे चेतन! तू जड़ शरीर के प्रेम रस के फंदे में इस तरह फँस गया है जिस तरह वादल चन्द्रमा की सुन्दर किरणों को छिपा लेता है।
हे प्यारे चेतन! दुनियां की झूठी लज्जा को छोड़कर धर्म जहाज पर चढ़कर तू संसार समुद्र से पार हो ।
ज्ञान पच्चीसी इसमें २५ दोहे हैं प्रत्येक दोहा आत्म ज्ञान की तंरगें भरने चाला है। एक छोटे से दोहे में ज्ञान का महान रहस्य भर दिया है।
प्रत्येक उपमा सरस और हृदय को आकर्पित करने वाली है। आत्मा को मीठी मीठी थपकी देकर चैतन्य किया गया है। ज्यों काहू विपधर उसै, रुचि सों नीम चवाय ।
त्यों तुम ममता में मढ़े, मगन विपय सुख पाय ॥ ज्यों सछिद्र नौका चढ़े, बूढ़ई अंध अदेख ।