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________________ क्षमा और अहिंसा की सर्वग्राह्यता डा० दरवारीलाल कोठिया शान्ति और सुख ऐसे जीवन-मूल्य है जिसकी चाह मानवमात्र को रहती है। अशान्ति और दुःख । किसी को भी इष्ट नही, ऐसा सभी का अनुमान है अस्पताल के उस रोगी से पूछिये, जो किसी पीड़ा से कराह रहा है और डाक्टर से शीघ्र स्वस्थ होने के लिये कातर होकर याचना करता है । वह रोगी यही उत्तर देगा कि हम पीड़ा की उपशान्ति और चेन चाहते है। उस गरीब और दीन-हीन आदमी से प्रश्न करिये, जो अभावो से , पीडित है । वह भी यही जवाब देगा कि हमें ये अभाव न सताये और हम सुख से जियें। उस अमीर और साधन सम्पन्न व्यक्ति को भी टटोलिये जो वाह्य साधनो से भरपूर होते हुए भी रात-दिन चिन्तित है। वह भी शान्ति ।' और सुख की इच्छा व्यक्त करेगा। युद्ध भूमियो मे लड रहे उस योद्धा से भी सवाल करिये जो देश की रक्षा के । लिये प्राणोत्सर्ग करने के लिये उद्यत है। उसका भी उत्तर यही मिलेगा कि वह अन्तरग में शान्ति और सुख का इच्छुक है। इस तरह विभिन्न स्थितियो में फंसे व्यक्ति-व्यक्ति की आन्तरिक चाह शान्ति और सुख की प्राप्ति की मिलेगी। मनुष्य संवेदनशील है । यह संवेदनशीलता हर मनुष्य में चाहे वह किसी भी देश, किसी भी जाति और किसी भी वर्ग का हो, पायी जायेगी। इसका संवेदन होने पर उसे शान्ति और सुख मिलता है तथा अनिष्ट का संवेदन उसके अशान्ति और दुःख की परिचायक है। इस सर्वेक्षण से हम इस परिमाण पर पहुंचते है कि मनुष्य के जीवन का मूल्य शान्ति और सुख है। यह बात उस समय और अधिक अनुभव मे आ जाती है जब हम किसी युद्ध से विरत होते है या किसी भारी परेशानी से मुक्त होते हैं । दर्शन और सिद्धान्त ऐसे अनुभवो के आधार से ही निर्मित होते और शाश्वत बन जाते है। जब मन में क्रोध की उदभूति होती है तो उसके भयंकर परिणाम दृष्टि गोचर होते है। अमेरिका ने जब । जापान पर युद्ध में उसके दो नगरो को वमो से ध्वस कर दिया तो विश्व ने उसकी भत्र्सना की। फलतः सब ओर से शान्ति की चाह की गयी । क्रोध के विपेले कीटाणु केवल आस-पास के वातावरण और क्षेत्र को ही ध्वस्त नही करते । खुद का भी नाश कर देते है। हिटलर और मुसोलनी के क्रोध ने उन्हें विश्व के चित्र पर से सदा के लिये अस्त कर दिया। दर न जाये, पाकिस्तान ने जो क्रोधोन्माद का प्रदर्शन किया उसने पूर्वी हिस्से को उससे हमेशा के लिये अलग कर दिया। व्यक्ति का क्रोध कभी-कभी भारी से भारी हानि पहुंचा देता है। इसके उदाहरण देने की जरूरत नहीं है यह सर्वविदित है।। क्षमा एक ऐसा ही अस वल है जो क्रोध के वार को निरर्थक ही नहीं करता, क्रोधी को नमित करा देता है । क्षमा से क्षमावान की रक्षा होती है. उससे उनकी भी रक्षा होती है, जिनपर वह की जाती है। क्षमा कर है जो आस-पास के वातावरण को महका देती है और धीरे-धीरे हरके हृदय में वह बेठ जाती है। क्षमा भीतर से उपजती है, अतः उसमें भय का लेशमात्र भी नही रहता । वह वीरो का वल है, कायरो का नही, कायर तो क्षण-क्षण में भयभीत और अविजित होता रहता है । पर क्षमावान निर्भय और विजयी होता है। वह ऐसी विजय प्राप्त करता है जो शत्रु को भी उसका बना देती है। क्षमावान को क्रोध आता नही, उससे वह कोसो दूर रहता है।
SR No.010268
Book TitleJain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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