________________
कोण अपनाने का आग्रह करते है । स्याद्वाद समदृष्टि से प्रत्येक मान्यता में सत्यांश की, गुणात्मकता को खोज करता है। वह यह कहता है कि जो मेरा, वह सच्चा यह ढिढ़ोरा मत पीटो। यह कहो कि जो सच्चा वह मेरा। कितनी विशाल हृदयता, सहिष्णुता और गुणग्राहकता है इस स्याद्वाद सिद्धान्त मे । महावीर के उपदेश मे कही भी ऐसी लक्ष्मण रेखा नही, जिसका उलघन किसी के लिए वर्जित हो। उन्होने मानव-जीवन की श्रेष्ठता, पवित्रता, परमात्मरूपकता पर बल दिया।
अन्त मे श्रमण शब्द की कुछ व्याख्याएँ इस मान्यता को संपुष्ट करती है कि भगवान महावीर पूर्णतः समदृष्टि थे। "श्रामण ममता, अहंकार से रहित, आसक्ति विहीन होता है। वह सब मे समान भाव रखता है। लाभालाभ, सुख दुःख, जीवनमरण, निन्दा प्रशंसा, मानापमान मे समभाव ही रहता है ।" "जो किसी से दुष नही करता, सब से प्रेम करता है, वही सच्चा श्रमण है।" "श्रमण न इस लोक की कामना करता है न परलोक की। सर्प हो या चन्दन, आहार हो या अनाहार, वह समभाव ही रहता है।"
__“जैसे मुझे दुःख अनिष्ट है वैसे ही दूसरे प्राणियो को। इस प्रकार जो न तो हिसा करता है और सबके प्रति समान अथवा तुल्य व्यवहार करता है, वही श्रमण है।”
With best Compliments from :
BHANWARLAL JASKARAN
JUTE BROKERS 12, India Exchange Place,
CALCUTTA-I