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३० | जैन कथामाला (राम कया) पर दृढ़ता और दर्प स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे। नवमणियों में उसके नौ मुख झिलमिला रहे थे । केकसी से बोला____-प्रिये ! यह पुत्र तो मेरे हृदय में भी कौतूहल उत्पन्न कर रहा है। इस नवमणिहार को आज तक हमारे कुल में कोई धारण न
है। प्रिये ! यह पाकेकसी से बोली। नवमणियों
सका।
-क्यों?
—यही जिज्ञासा मेरे पिता सुमाली ने भी एक श्रमणमुनि के समक्ष प्रकट की थी।
-तो उन्होंने क्या बताया ?
-मुनि चार ज्ञान के धारी थे। उन्होंने बताया-'इस नवमणि हार को धारण करने वाला अर्द्धचक्री होगा। इससे कम पुण्य वाला जीव इसे धारण नहीं कर सकता।'
पुत्र को अर्द्धचक्की जानकर केकी के मुख पर प्रसन्नतायुक्त दर्प आ गया । वह शिशु को बड़े स्नेह से देखने लगी। पिता रत्नश्रवा ने हार में पुत्र के मुख प्रतिविम्वों के कारण वालक का नाम दशमुख रख दिया।
१ एक मुख तो वालक का था ही और नौ मणियों में उसके मुंख के नौ ही प्रतिविम्ब झलक रहे थे । अतः बालक के दस मुख दिखाई पड़ते थे।
-सम्पादक उत्तर पुराण के अनुसार रावण के पूर्वजों का वर्णन इस प्रकार है
इसी (जम्बूद्वीप के) भरतक्षेत्र के विजयार्द्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में मेघकूट नाम का नगर है । इस पर राजा विनमि के वंश में उत्पन्न हुआ सहन्नग्रीव नाम का विद्याधर राजा राज्य करता था। उसके भाई का पुत्र बहुत बलवान था इसलिए उसने कोधित होकर सहस्रग्रीव