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२६ | जैन कथामाला (राम-कथा)
इन्द्र की एक अन्य विभूति और होती है अक्षय कोप ! वह भी इस (नकली) इन्द्र के पास हो गई। अव क्या कमी थी उसके इन्द्र
होने में।
वह पूर्णरूप से स्वयं को इन्द्र मानता और उसके सेवक स्वयं को साक्षात इन्द्र के ही सेवक । इन्द्र अव सुखपूर्वक निष्कंटक राज्य करने लगा।
त्रिषष्टि शलाका ७/१