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वानरवंश की उत्पत्ति | १५ --श्रीकण्ठ ने आपकी पुत्री का बलात् अपहरण नहीं किया है। -तो........? -आपकी पुत्री स्वेच्छा से उसके साथ गई है। —यह तुम्हारे स्वामी का युद्ध न करने का बहाना है। —यह वहाना नहीं सत्य है, राजन् ! -तुम्हारे कथन पर मुझे विश्वास नहीं होता।
तो फिर आपको कैसे विश्वास होगा? राजा पुष्पोत्तर कुछ देर तक विचार-मग्न रहा। वह स्वयं भी युद्ध के पक्ष में नहीं था किन्तु अपमान का जीवन तो मृत्यु से भी बुरा है। पुत्री का वलान् अपहरण हो जाय और पिता देखता रहे, कुछ न कर सके-इससे बड़ा अपमान इस पृथ्वी पर और क्या होगा?
राजा मौनपूर्वक विचार कर ही रहा था कि एक स्त्री ने प्रवेश करके कहा—महाराज की जय हो !
-कौन हो और कहाँ से आई हो? --राजा ने उस स्त्री से पूछा। -महाराज ! मैं राजकुमारी पद्मा की ओर से आई हैं। -क्या समाचार है ? -कुमारीजी ने आपके लिए सन्देश दिया है।
-क्या ? । दूती ने विनयपूर्वक कहा-कुमारीजी का सन्देश है 'पिताजी ! श्रीकण्ठ ने मेरा हरण नहीं किया है, वरन् मैंने ही स्वेच्छा से उनका वरण किया है । अब वे ही मेरे पति हैं।'
राजा ने दूती को घूरकर देखा और पूछा-तुम सत्य कह रही हो ? इसमें कोई चाल तो नहीं है ?
-नहीं महाराज ! मेरा कथन अक्षरशः सत्य है। इसमें कोई चाल नहीं। -दृढ़तापूर्वक दूती ने कहा।
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