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४६६ / जैन कथामाला (राम-कथा)
रावण, लक्ष्मण और सीता के आगामी जन्मों का वर्णन करके रामर्षि मौन हो गये।
केवली रामपि से अपने भावी जन्मों को सुनकर सीतेन्द्र ने उन्हें नमन किया और पूर्वस्नेह के कारण चौथी भूमि में पहुंचा।
वहाँ पर शम्वूक, रावण और लक्ष्मण अनेक रूप बनाकर परस्पर युद्ध में लीन थे। उनकी इस प्रवृत्ति को देखकर सोतेन्द्र का हृदय द्रनित हा गया। वह सोचने लगा-'जीवों की कैसी विचित्र प्रवृत्ति है। सदा ही वदला लेने पर उतारू रहता है। यह नहीं सोचता कि वैर की परंपरा अनन्तकाल तक चलती रही तो मुक्ति-सुख कैसे मिलेगा? भविष्य में तीर्थकर होने वाले जोव भी मोह रूपी मदिरा से नहीं वच पाते।'
सीतेन्द्र के हृदय में उनके उद्धार की प्रेरणा जागी। वह शम्बूक और रावण को समझाते हुए कहने लगा
-पिछले जन्म में तुमने जो हिंसात्मक कार्य और पापकर्म किये उसका फल तो अब भोग रहे हो और अव जो निरन्तर युद्ध में लीन हो तो इसके परिणाम को भी तो सोचो। अरे ! अव तो छोड़ दो यह वैर भाव ।
__ इस प्रकार उन्हें पारस्परिक युद्ध से विरत करके सीतेन्द्र ने केवल• ज्ञानी राम से जो आगामी भव सुने थे वे सब उन्हें सुना दिये। - भावी भवों को सुनकर लक्ष्मण और रावण को वोध हुआ। वे . पश्चात्ताप करते हुए कहने लगे
-आपने हम पर बड़ी कृपा की। पूर्वजन्म में उपाजित कर्मों के फलस्वरूप जो हमें यह कटु परिणाम मिला है उसे कौन मिटा सकता है।
यह आर्त वचन सुनकर सीतेन्द्र ने करुणापूर्वक कहा
-मैं तुम लोगों को इस दुख से वचाने का प्रयास करूंगा। मैं तुम्हें देवलोक ले जाऊँगा।