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राम का मोक्ष गमन
गुरुदेव सुव्रत के समीप रहकर मुनि राम ने द्वादश अंग और चौदह पूर्वों का अध्ययन किया । विविध प्रकार के अभिग्रह और निर्दोष श्रमणाचार का पालन करते हुए वे गुरु के साथ साठ वर्ष तक विचरते रहे । तत्पश्चात गुरु की आज्ञा से एकल विहारी हो गये ।
वे निर्भय होकर एक जंगल की गिरिगुहा में ध्यानस्थ हुए। उसी रात्रि को उन्हें उत्कृष्ट अवधिज्ञान की प्राप्ति हुई । वे चौदह राजू पर्यन्त सम्पूर्ण लोकं को देखने-जानने लगे । समस्त लोक को देखते हुए उन्हें अपने अनुज लक्ष्मण की मृत्यु के कारणभूत दोनों कपटी देव भी देवलोक में दिखाई दिये । अनुज लक्ष्मण को देखा तो वह चौथी भूमि में थे। मुनि श्रीराम सोचने लगे - ' पूर्वजन्म में जव मैं धनदत्त वणिक् था तब यह मेरा भाई वसुदत्त था । उस जन्म में इसने लोक कल्याणकारी कार्य किया नहीं और वैसे ही मर गया । अनेक भव-भ्रमण करके वह इस जन्म में मेरा छोटा भाई लक्ष्मण वना तो इस भव में भी कोई सुकृत्य नहीं किया । सौ (१००) वर्ष कुमार वय में, तीन सौ (३००) वर्ष माण्डलिकपने में, चालीस (४०) वर्ष दिग्विजय में और ग्यारह हजार पाँच सौ साठ (११,५६०) वर्प राज्य-भोग में इस प्रकार १२००० (बारह हजार) वर्ष की लम्बी आयु यों ही विता दी और