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.. वासुदेव की मृत्यु | ४८१ अग्नि-संस्कार की बात सुनते ही राम की कोपाग्नि प्रज्वलित हो गई। उनके होठ फड़कने लगे। लाल नेत्र करके बोले
-दुर्जनो ! अग्नि-संस्कार हो तुम्हारा और तुम्हारे परिवार का। मेरे जीवित भाई का अग्नि-संस्कार करा रहे हो ?
और फिर लक्ष्मण से कहने लगे
-अरे भाई ! हे वत्स ! हे लक्ष्मण ! तुम नहीं बोलते हो तो ये सब लोग कैसे-कैसे वचन कह रहे हैं। एक बार तुम्हारा मुंह खुल जाय तो इन सबके मुंह वन्द हो जायें ।
यह कहकर राम ने लक्ष्मण का शव कन्धे पर रखा और दूसरी ओर चले गये।
श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण के शव को नहलाते, उस पर सुगन्धित चन्दन लगाते, बहुमूल्य वस्त्र पहनाते, भोजन मँगाकर उसे खिलाने का प्रयास करते, अंक में रखकर वार-वार चुम्बन करते, उसको अपने साथ ही शैया पर सुलाते ।
अहो ! मोह की कमी झकोर कि राम जैसा चरम शरीरी तद्भव मोक्षगामी, परम पराक्रमी और उत्कृष्ट विवेकी भी ऐसा आचरण करने लगे।
राम इस प्रकार विक्षिप्त हो गये हैं-यह समाचार इन्द्रजित तथा सुन्द आदि राक्षसों के पुत्रों को भी प्राप्त हो गया। वे सभी राक्षसपूत्र अन्य विद्याधरों के साथ राम को मारने की इच्छा से अयोध्या पर चढ़ आये। जिस प्रकार प्रगाढ़ निद्रा में अचेत सिंह की कन्दरा के आस-पास की भूमि को कायर शिकारी भी रौंद डालता है वैसे ही उन राक्षसों और विद्याधरों ने अयोध्या का प्रान्त भाग भी रौंद डाला।
यह सुनकर राम ने लक्ष्मण के शव को साथ लिया और अपने