________________
४७० | जैन कथामाला (राम-कथा) देवलोक में गई। वहाँ से च्यवन करके जनक राजा की पुत्री सीता हुई। पूर्व में वेगवती के शाप से शापित शम्भू राजा का जीव आगे चलकर राक्षसपति रावण हुआ। इस शाप के कारण ही जानकी उसके विनाश का निमित्त बनी और पूर्वजन्म के राग के कारण ही विवेकी रावण उसका हरण करके ले गया । राग का तीव्र भाव विवेक का नाश कर देता है। सुदर्शन मुनि पर मिथ्या कलंक लगाने के ही कारण सीता का भी लोक में मिथ्या अपवाद हुआ।
राक्षसराज रावण बनने से पहले शम्भू राजा का जीव भवभ्रमण करता हुआ कुशध्वज ब्राह्मण की स्त्री सावित्री के गर्भ से प्रभास नाम का पुत्र हुआ। प्रभास ने विजयसेन मुनि के पास दीक्षा ली और तप करने लगा। एक बार इन्द्र के समान वड़ी समृद्धि वाला विद्याधरों का राजा कनकप्रभ सम्मेत शिखर की ओर जा रहा था । मुनि प्रभास ने उसे देखकर निदान किया-'इस तप के फलस्वरूप में भी ऐसा ही समृद्धिवान बनें ।' वह मरकर तीसरे देवलोक में देव बना और वहाँ से च्यवकर राक्षसपति दशमुख हुआ । उस निदान के कारण ही वह समस्त विद्याधरों का राजा वना ।
याज्ञवल्क्य ब्राह्मण' अनेक योनियों में जन्म-मरण करता रहा और इस जन्म में रावण के भाई रूप में उत्पन्न हुआ। हे विभीपण ! वह याज्ञवल्क्य ब्राह्मण का जीव तुम ही हो ।
राजा शम्भु द्वारा मारा गया पुरोहित श्रीभूति स्वर्ग गया। वहाँ से अपना आयुष्य पूर्ण करके सुप्रतिष्ठपुर में पुनर्वसु नाम का विद्याधर हुआ। एक बार कामातुर होकर उसने पुण्डरीक विजय के त्रिभुवनानन्द चक्रवती की पुत्री अनंगसुन्दरी का हरण कर लिया । चक्रवर्ती ने
उसको पकड़ने के लिए विद्याधरों की सेना भेजी। उनसे युद्ध - करने के दौरान अनंगसुन्दरी विमान में से एक लता-मण्डप में
१ यह धनदत्त और वसुदत्त वणिक-पुत्रों का उस जन्म में मित्र था ।