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________________ : 5: पिता-पुत्र का मिलन रुदन करती हुई सीताजी के पास राजा भामण्डल संभ्रमित होकर आया । भाई को देखते ही सीता ने आतुर शब्दों में कहा - भैया ! पिता-पुत्र में युद्ध होने वाला है । तुरन्त रोको, नहीं तो अनर्थ हो जायगा । - हाँ, इसीलिए तो मैं आया हूँ । नारदजी ने मुझे पूरी बात बता दी है | जल्दी चलो | इससे पहले कि युद्ध प्रारम्भ हो, हममें वहाँ पहुँच जाना चाहिए | यह कहकर भामण्डल ने सीता को विमान में बिठाया और शीघ्र गति से चलकर लवण-अंकुश के शिविर में जा पहुँचा । शिविर अयोध्या के समीप ही लगा हुआ था । दोनों भाइयों ने माता को तुरन्त प्रणाम किया और भामण्डल की ओर जिज्ञासा भरी दृष्टि से देखने लगे । सीता ने बताया- 'यहं तुम्हारे मामा हैं।' उन्होंने भामण्डल को भी नमस्कार किया । हर्ष से रोमांचित होकर भामण्डल ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा 1 - मेरी बहन वीर - पत्नी तो थी ही, वीरमाता भी हो गई । किन्तु वीर-पुत्रों तुम अपने पिता से ही युद्ध क्यों करते हों ? वे तो अजेय हैं । - माताजी तो ऐसे वचन कहती ही थीं आप भी हमें कायर बना रहे हैं । -
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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