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________________ ४१८ | जैन कथामाला (राम-कथा) ब्रह्मदेवलोक से अपना आयुष्य पूर्ण करके अचल का जीव तो शत्रुघ्न हुआ और अंक का जीव कृतांतवदन । विशेष-(१) उन दोनों भाइयों ने कुछ वर्ष तो अयोध्या में बिताए फिर भरत और शत्रुघ्न को वहाँ का राज्य देकर स्वयं (राम-लक्ष्मण दोनों) बनारस चले गये । (पर्व ६८ श्लोश ६३८-८९) (२) वाल्मीकि रामायण के अनुसार (१) राज्याभिषेक (अयोध्या का राज्याधिकार) राम का हुआ था; लक्ष्मण का नहीं। [युद्ध काण्ड] (२) राज्याभिषेक के पश्चात सभी वानर-वीरों को यथायोग्य सम्मान और भेंट देकर विदा कर दिया गया । [युद्ध काण्ड (३) ऋषियों ने आकर राम से प्रार्थना की कि वे मधु के पुत्र लवणासुर से उनकी रक्षा करें । तव शत्रुघ्न लवणासुर को मारने मधुरा (मथुरा) जाते हैं। (४) लवणासुर मधु का पुत्र था और मधु लोला दैत्य का ज्येष्ठ पुत्र था । मधु की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने अपने त्रिशूल से चमचमाता हुआ शूल दिया था । मधु की प्रार्थना पर शिवजी ने वह शूल उसके पुत्र के पास रहने का भी वरदान दिया था। (५) मधु की पत्नी कुम्भीनसी थी। उसी के उदर से लवण ने जन्म लिया था। (६) मधु उस देश को छोड़कर समुद्र में रहने चला गया था। अतः शत्रुघ्न का मधु के साथ युद्ध होने का प्रश्न ही नहीं था। उनके हाथ से लवणासुर मारा गया और उसके मरते ही दिव्य शूल महादेवजी के पास वापिस जा पहुंचा। (७) यहां च्यवन ऋषि के मुख से शूल की शक्ति का वर्णन कराते हुए भरत के पूर्वज मान्धाता के विनाश की घटना कही गई है मान्धाता जब स्वर्गलोक पर अपना अधिकार जमाने को उत्सुक हुए तो इन्द्र ने बताया-'अभी मर्त्यलोक में ही मधुवन (मथुरा) का राजा
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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