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इसी प्रकार आगे श्रीराम-भरत को समझाते हुए कहते हैं
गाँङ हंकोर य त हिलन् । निन्दा तन् गवयाकॅन् ।
तं जन्मामुहर ऋ । येन प्रश्रय सुमुख ।। (३१६१) अर्थात्-अत्यधिक अहंकार से दूर रहना चाहिए । निन्दा नहीं करनी चाहिए । कुलीन (उच्च-कुल) जन्म का मद नहीं करना चाहिए। हे सुमुख ! यही प्रश्रय है।
इसी प्रकार के अन्य अनेकों उदाहरण दिये जा सकते हैं जिनसे श्रीराम' के चरित्र का उज्ज्वल पक्ष स्पष्ट होता है और उनके सद्गुणों की झलक मिलती है । सत्य यह है कि श्रीराम अनेक गुणों के आगार हैं । उनके सद्गुण. उनके जीवन-चरित्र में प्रगट हो रहे हैं। उनकी ज्योति सुदीर्घकाल बीत जाने पर भी धूमिल नहीं पड़ी है।
राम के चरित्र की प्रेरणा _श्रीराम का चरित्र अनेक सद्गुणों का भण्डार है, जो लौकिक दृष्टि से बड़े ही उपयोगी और प्रेरणाप्रद हैं । यद्यपि उनके उज्ज्वल और उदात्त चरित्र में इतने मोती हैं कि उनकी गणना भी कठिन है किन्तु कुछ प्रमुख प्रेरक तत्त्वों पर दृप्टिपात करना उचित होगा।
राम की पितृभक्ति अनुपम है। वे कहते हैं कि 'पिता की आज्ञा से मैं अग्नि में कूद सकता हूँ, समुद्र में छलांग लगा सकता हूँ।' इसी प्रकार मातभक्ति, गुरुभक्ति, भ्रातृस्नेह, पत्नीप्रेम आदि गुण उनमें भरपूर मात्रा में थे। चारों भाइयों का स्नेह आज भी भारतीय जनता का आदर्श है । ____साहस ! अदम्य साहस था उनमें । उस युग के सर्वश्रेष्ठ साधन सम्पन्न लकापति रावण से साधन-हीन ' होने पर भी भिड़ गये.और सफलता प्राप्त की । सीताहरण के समय क्या था उनके पास ? केवल दो भाई ही तो थे । - वंशगौरव की रक्षा की भावना भी उनके कण-कण में समाई-थी। रघुकुल की कीर्ति कलंकित न हो जाय - इसके लिए वह प्राणप्यारी सीता का भी परित्याग कर देते हैं।