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३८६ [ जैन कथामाला (राम-कथा)
सूर्योदय के साथ ही रावण अपनी सेना सहित युद्धक्षेत्र में आ डटा । राम की सेना के वीर तो सन्नद्ध थे ही। दोनों ओर के सुभट युद्ध में रत हो गये।
राक्षससेना का संचालन रावण स्वयं कर रहा था और राम की सेना का लक्ष्मण । महाभुज लक्ष्मण राक्षससेना को चीरते हुए रावण के सम्मुख आ डटे। पराक्रमी पुरुषों के हृदय कुसुम से भी कोमल और वज्र से भी अधिक कठोर होते हैं। युद्ध-भूमि में ही उनके वज्र हृदय की झाँकी मिलती है। यद्यपि रावण लक्ष्मण को मारना नहीं चाहता था किन्तु शस्त्र प्रहार में निर्बलता दिखाना उसकी कायरता होती। किन्तु लक्ष्मण के हृदय की दशा इसके विपरीत थी। वे रावण का प्राणान्त करने के लिए दृढ़-संकल्प थे।
दोनों वीर विभिन्न प्रकार के साधारण शस्त्रों से युद्ध करने लगे। एक प्रहार करता तो दूसरा प्रतिकार । सामान्य शस्त्रों से जयपराजय का निर्णय न हो पाया तो दिव्यास्त्रों की बारी आई। रावण ने अनेक दिव्यास्त्रों का प्रयोग किया किन्तु वीर लक्ष्मण ने सभी को विफल कर दिया। पसीना आ गया लंकेश को । समझ गया कि प्रतिपक्षी वीर भी सामान्य कोटि का नहीं है। उसके सभी छल-प्रपंच व्यर्थ ही गये । लक्ष्मण के सम्मुख उसको एक न चली। ___ अपनी विजय को असम्भव जानकर रावण ने बहुरूपिणी विद्या का स्मरण किया। विद्या तत्काल उपस्थित हुई। रावण ने उसकी सहायता से अनेक प्रकार के भयंकर रूप बनाकर लक्ष्मण को भयभीत करने का प्रयास किया। उसके इन अनेक रूपों को देखकर लक्ष्मण ने .. व्यंग किया
-क्या मदारी के से खेल दिखा रहे हो, लंकेश ? तुम समझते हो इस नटविद्या से मैं डर जाऊँगा।