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• संजीवनी बूटी | ३६६ स्त्री के कारण उसने मुझसे शत्रुता वाँध ली और युद्ध करने लगा। . वहुत समय तक हम दोनों में युद्ध होता रहा । अन्त में उसने चन्डरवा शक्ति का प्रयोग करके मुझे भूमि पर गिरा दिया। मैं जमीन पर पड़ापड़ा तड़पने लगा । असह्य पीड़ा से मेरी वड़ी दुर्दशा थी।
जहाँ मैं गिरा था वह अयोध्या नगरी का माहेन्द्रोदय नाम का उद्यान था । तुम्हारे दयालु भाई भरत ने मुझे देखा । उन्होंने सुगन्धित जल से मेरा सिंचन किया। गजव का प्रभाव था उस जल में । शक्ति तुरन्त ही मेरे शरीर से बाहर निकल गई और तत्काल ही घाव भी भर गया।
आपके वन्धु ने मेरी प्राणरक्षा की तो क्या मैं आपकी इतनी भी सहायता न करूं कि लक्ष्मण को सजीवन करने का उपाय ही वता '. दूं। आप विलम्ब मत करिए विशल्या का अभिसिंचन जल मँगवाइये। श्रीराम ने उत्सुक होकर पूछा
विद्याधर ! यह जल कहाँ मिलेगा और कौन है यह विशल्या ? विद्याधर ने बताया-जब मैं स्वस्थ हो गया तो मुझे भी उस चमत्कारी जल के सम्बन्ध में उत्सुकता जाग्रत हुई थी। तब मैंने भी भरतजी से यही पूछा था । उन्होंने जो कुछ वताया वही मैं आपको उन्हीं के शब्दों में सुनाये देता हूँ। . __यह कहकर विद्याधर ने आगे बताया
एक समय विंध्य नाम का सार्थवाह गजपुर से अयोध्या आया। उसके साथ एक पाड़ा (भैंस का बच्चा) भी था । अतिभार (अत्यधिक बोझ लदा होना) के कारण वह मार्ग में ही गिर पड़ा। पाड़ा एक वार गिरा तो फिर उठ न सका। सार्थवाह तो उसे छोड़कर आगे चल दिया और पाड़ा यहीं पड़ा-पड़ा अपने जीवन के अन्तिम दिन गिनने लगा। ..