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युद्ध का दूसरा दिन | ३५३ राक्षस वज्रोदर के धराशायी होते ही रावण का पुत्र जम्बूमाली हनुमान से युद्ध करने आया । पवनपुत्र ने तीव्र वाण-वी और शस्त्राघातों से उसे सारथी सहित मार डाला। इसके पश्चात राक्षस.महोदर आया तो उसकी भी यह दशा हुई। पवनकुमार के पवनवेग में वह भी उड़ गया।
वीर हनुमान अपने प्रचण्डवेग से राक्षस-सेना का विध्वंस कर रहे थे। राक्षस-सेना विह्वल होकर भागने लगी।
अपनी सेना को भंग होते देख कुम्भकर्ण स्वयं रण-क्षेत्र में कूद पडा । उस विशालकाय और महाबली ने अनेक वानरों को तो पैरों से ही कुचल डाला । उसने हाथों से, पैरों से, त्रिशूल, मुद्गर आदि से भयंकर युद्ध किया। इस विचित्र रण कौशल से वानर सेना में घवड़ाहट फैल गयी । वानर-वीर पीछे की ओर भागने लगे।
भामण्डल, दधिमुख, महेन्द्र, कुमुद, अंगद आदि कुम्भकर्ण से लोहा. | लेने दौड़ पड़े। उन्होंने शिकारियों की भाँति उसे चारों ओर से घेर
लिया। सिंह समान प्रतापी कुम्भकर्ण पर चारों ओर से शस्त्र प्रहार होने लगे। इस परिस्थिति से उबरने का कोई और उपाय न देखकर उसने प्रस्वापन अस्त्र उन पर छोड़ दिया। .
प्रस्वापन अस्त्र अमोघ था । तत्काल उसने अपना प्रभाव दिखाया। सम्पूर्ण सेना निद्रामग्न हो गई। उसका प्रतीकार किया प्रबोधिनी महाविद्या द्वारा वानरराज सुग्रीव ने । 'कहाँ है कुम्भकर्ण ?' 'कहाँ है कुम्भकर्ण ?' चिल्लाते हुए वानर सुभट जाग पड़े।
सुग्रीव ने तीक्ष्ण वाण-वर्षा करके उसके रथ सारथि आदि को धराशायी कर दिया। कुम्भकर्ण भूमि पर आ टिका। महाराक्षस अपने हाथ में मुद्गर उठाये हुए सुग्रीव को मारने दौड़ पड़ा मानो मत्तगयन्द अपनी सूंड़ ऊपर किये हुए चला जा रहा था। अनेक कपि तो मार्ग में ही उसके चरण-प्रहारों से मर गये। कुम्भकर्ण ने मुद्गर