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. उपसर्ग शान्ति | ३२५ लंकासुन्दरी आश्चर्यपूर्वक उनकी ओर देखने लगी। हनुमान से दृष्टि मिलते ही वह काम-पीड़ित हो गई। उसे एक साधु के वचन स्मरण हो आये-'तेरे पिता को मारने वाला तेरा पति होगा।' यह विचार आते ही वह विनम्र स्वर में बोली
-हे वीर ! पिता की मृत्यु से मैं क्रोधित होकर तुमसे युद्ध करने लगी थी । तुम जैसा सुभट मेरी दृष्टि में कोई नहीं आया। अब तुम मेरा पाणिग्रहण करो। - -क्यों ? अचानक ही इस अनुराग का कारण ? -हनुमान ने पूछा।
-एक साधु ने मुझे यही बताया था कि 'तुम्हारे पिता को मारने वाला ही तुम्हारा पति होगा।'
हनुमान ने भी लंकासुन्दरी की प्रार्थना स्वीकार कर ली । तव तक सन्ध्याकाल समाप्त होकर रात्रि प्रारम्भ हो गई थी और दोनों ने रात्रि एक साथ व्यतीत की।
-त्रिषष्टि शलाका ७६