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सम्बन्ध रखता है और भाई को राज्य से बाहर भी निकाल देता है; इस प्रकार वह अधर्म, अनीति और अन्याय का पोपण करता है । किन्तु वालि के मरने के बाद तारा जिस प्रकार शोकाकुल होती है, विह्वल होकर रोती और श्रीराम से पुकार करती है तो सहसा यह प्रश्न मस्तिष्क में उद्भूत हो जाता है कि 'क्या कोई नारी उस पुरुष के लिए ऐसा करुण विलाप कर सकती है जिसने बलपूर्वक उसके साथ बलात्कार किया हो ? इस प्रश्न का उत्तर वैदिक परम्परा में कहीं भी नहीं है । सिर्फ इतना ही कह दिया गया है कि'राम वालि निज धाम पठावा ।'
वालि के चरित्र में ऐसी असंगति जैन परम्परा में नहीं है । यहाँ भी वह रावण का पराभव करता है, भगवद्भक्त है, अतिशय वली है किन्तु पाप में लिप्त नहीं है । वह पहले ही संयम स्वीकार कर लेता है। इस प्रकार वालि का चरित्र आदि से अन्त तक निर्मल है और है शौयं एव वैराग्य की अनुपम गाथा ।
हनुमान
हनुमान राम कथा के प्रमुख पात्र हैं । यदि यह कहा जाय कि इनके विना राम कथा पूरी नहीं होती तो अतिशयोक्ति न होगी । वैदिकं परंम्परा के अनुसार तो वे राम के अनन्य भक्त, अतुलित बलशाली, विवेकी, आजन्म ब्रह्मचारी और राम के वरदान स्वरूप अमर हैं । इन्हें ब्रह्मा, सूर्य, इन्द्र आदि सभी देवताओं से वरदान प्राप्त हुए हैं किन्तु ऋषियों की कृपा इन पर भी हुई । इनकी वाल सुलभ चपलताओं से रुष्ट होकर ऋषियों ने इन्हें 'अपना बल भूल जाने का शाप' दिया; किन्तु तुरन्त ही फिर खयाल आया कि सागर-संतरण करके सीताजी की खबर कौन लाएगा तो उपाय भी बता दिया कि 'जब कोई तुम्हें तुम्हारे वल की स्मृति करायेगा तो तुम्हें अपने विस्मृत बल की स्मृति हो जायेगी ।'
दूसरी विशेषता यह है कि 'अपुत्रस्य गतिर्नास्ति' को मापने वाली वैदिक परम्परा में हनुमान का पुत्र होना भी आवश्यक था । वह हुआ भी, चाहे पसीने से ही हुआ - मकरम्बज नाम था उसका । ( सागर-संतरण के समय