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२७६ / जैन कथामाला (राम-कथा)
-सीताहरण में मेरी सहायता करो। अवलोकनी विद्या भय से काँप गई । बोली
-यह मेरी सामर्थ्य से बाहर है। मैं तो क्या देवराज इन्द्र का भी यह साहस नहीं है कि राम की उपस्थिति में सीता को आँख उठाकर भी देख सकें। ___-कोई न कोई उपाय तो करना ही पड़ेगा? -रावण के मुख से निकला।
-हाँ, एक उपाय है। -वह क्या ?
-जब लक्ष्मण युद्ध के निमित्त गये थे तव राम ने कहा था 'संकट पड़ने पर सिंहनाद कर देना' । यदि लक्ष्मण के स्वर में सिंहनाद कर दिया जाय तो राम वहाँ चले जायेंगे और सीता अकेली रह जायेगी। -देवी ने उपाय बताया। __ 'जो कहे, सो करें' देवी ने उपाय बताया तो सिंहनाद भी उसे ही करना पड़ा। दूर से आये हुए सिंहनाद से राम-सीता दोनों व्याकुलहो गये । स्वर स्पष्ट ही लक्ष्मण का था । राम विचारने लगे
-अनुज को पराजित कर दे ऐसा कोई दूसरा बली है नहीं और सिंहनाद स्पष्ट उसी का है। यह क्या माया है ?
राम इन्हीं विचारों में डूब-उतरा रहे थे कि वात्सल्यमयी जानकी बोली
–नाथ ! वत्स लक्ष्मण संकट में है और आप विलम्ब कर रहे हैं। शीघ्र उसकी सहायता कीजिए।
-देवी ! लक्ष्मण को पराजित करदे ऐसा कोई सुभट इस भरतार्द्ध में नहीं।
--लक्ष्मण संकट में हैं और आप उनका बल बखान रहे हैं। तुरन्त जाइए और अनुज की रक्षा करिए ।