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पाँच सौ श्रमणों की बलि | २५६ रामचन्द्र गीध की इस अद्भुत चेष्टा को ध्यानपूर्वक देख रहे थे। उन्होंने पूछा
-गुरुदेव ! अव इस पक्षी की और क्या इच्छा है ?
-राम ! यह जटायु पक्षी सम्यक्त्वी हो चुका है और व्रत ग्रहण करने की इच्छा कर रहा है।
यह कहकर मुनिदेव ने उसे जीवघात, मांसाहार और रात्रि भोजन का प्रत्याख्यान (पच्चक्खाण) कराया।
जटायु ने मुनिराज के वचन स्वीकार किये और और व्रत ले लिए।
मुनि ने राम से कहा
-भद्र ! अव जटायु तुम्हारा साधर्मी वन्धु हो गया है । इसे साथ रखना ताकि यह दृढ़तापूर्वक अपने व्रतों का पालन कर सके।
श्रद्धावनत श्रीराम ने उत्तर दिया-पूज्य ! आज से जटायु मेरा छोटा भाई ही है। दोनों मुनि आकाश में उड़ गये। चारों (राम-लक्ष्मण-सीता और जटायु) उनकी ओर तव तक श्रद्धाभक्तिपूर्वक देखते रहे जब तक कि दोनों मुनि आँखों से ओझल न हो गये।
राम अपने अनुज लक्ष्मण और पत्नी सीता के सहित जटायु को साथ लिए हुए दिव्य रथ में बैठकर उस भयानक दण्डकारण्य में भटकने लगे।
-त्रिषष्टि शलाका ७५