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लाभ !
२३२ | जैन कथामाला (राम-कथा) में लग गया। उसी समय क्षेत्र के अधिष्ठायक देव श्रीराम के समक्ष प्रगट होकर कहा
-महाभाग ! आपकी क्या इच्छा है ? जो आप कहें वही मैं करूं।
-तुम क्या करना चाहते हो? - राम ने प्रतिप्रश्न कर दिया।
-यदि आप आज्ञा दें तो मैं आप सवका रूप स्त्री का सा वना दूं। --देव ने अपनी इच्छा प्रगट कर दी।
-इससे लाभ ?
-'स्त्रियों से हार गया' इस प्रकार अतिवीर्य की अत्यधिक अपकीर्ति होगी।
यह कहकर क्षणमात्र में देव ने सम्पूर्ण सेना को स्त्री रूप दिया और अदृश्य हो गया । राम-लक्ष्मण भी सुन्दर स्त्री बन गये।
श्रीराम और लक्ष्मण विवश से देखते रह गये। देव अदृश्य हो चुका था । अब चारा भी क्या था ? सेना सहित राजमहल के समीप पहुंचे और द्वारपाल से कहा
-राजा महीधर ने आपकी सहायता के लिए सेना भेजी है। द्वारपाल ने सूचना अतिवीर्य को दी तो वह कुपित होकर वोला
-महीधर स्वयं तो आया नहीं, सेना ही भेज दी। मैं अकेला ही भरत को विजय कर लूंगा। कोई आवश्यकता नहीं सहायता की। सेना को बाहर निकाल दो।
उसी समय किसी दूसरे व्यक्ति ने कह दिया-~देव ! सेना भी कैसी ? स्त्रियों की। सुनते ही अतिवीर्य आग-बबूला हो गया। उसने स्वयं वाहर