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.. सीता-स्वयंवर | १८३ चारों भाइयों के साथ जनक भी उपद्रवग्रस्त क्षेत्र में सेना के साथ गये । म्लेच्छ लोग भी लड़ने को तत्पर हुए। उन्होंने अब भी
राजा जनक की प्रार्थना पर दशरथ ने अपने मन्त्रियों और नैमित्तिकों से विचार किया।
मन्त्री आगमसार ने कहा-यज्ञ के निर्विघ्न समाप्त होने पर इन दोनों भाइयों का महोदय होगा।
-पर्व ६७, श्लोक १८४ पुरोहित ने भी कहा-'जनक अवश्य ही राम के लिए कन्या समर्पण कर देंगे । इसलिए दोनों कुमारों को वहाँ भेज देना चाहिए।'
इस तरह सेना के साथ राम-लक्ष्मण को मिथिलापुरी भेज दिया गया । इस प्रकार राम और लक्ष्मण दो राजकुमार ही मिथिला गये थे।
-पर्व ६८, श्लोक ३० राजा जनक ने दोनों कुमारों का स्वागत किया। राम-लक्ष्मण के संरक्षण मे कुछ ही दिनों में जनक की इच्छानुसार यज्ञ विधिपूर्वक पूर्ण हुआ।
जनक ने बड़ी विभूति के साथ सीता का विवाह राम के साथ कर किया 1.
कुछ दिन तक तो राम-लक्ष्मण जनकपुरी (मिथिलानगरी) में ही रहे। बाद में राजा दशरथ के यहाँ से उनको बुलाने के लिए मन्त्री आया।
राजा जनक की अनुज्ञा प्राप्त करके राम अपने अनुज लक्ष्मण और रानी सीता के साथ मिथिला से मन्त्री के साथ चल दिये ।
__ अयोध्या नगरी में दोनों भाइयों ने बड़ी विभूति के साथ प्रवेश किया।
पुत्र और पुत्र-वधू सीता को देखकर अयोध्या नरेश राजा दशरथ और सभी रानियाँ हर्प विभोर ही गईं। -पर्व ६८, श्लोक ३१-३६